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सकती है। क्योंकि चौदह प्रकार के सिद्धों80 में स्त्रीलिंग सिद्ध, पुरुषलिंग सिद्ध एवं नपुंसक लिंग सिद्धों का भी उल्लेख है।
वेद के तीन प्रकार और उनका सम्बन्ध -
कामभोग की अभिलाषा को वेद कहते हैं। वस्तुतः, वेद के तीन प्रकार हैं - स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद ।91
स्त्रीवेद2 – पुरुष के साथ काम-भोग की इच्छा को स्त्रीवेद कहते हैं, अर्थात् स्त्री के द्वारा पुरुष से सहवास एवं भोग की इच्छा स्त्रीवेद कहलाती है।
पुरुषवेद 83 – इसी प्रकार, स्त्री के साथ काम-भोग की इच्छा पुरुषवेद कहलाती है।
नपुंसकवेद84 - स्त्री तथा पुरुष -दोनों के साथ काम-भोग की इच्छा को नपुंसकवेद कहते हैं। प्राणी में स्त्रीत्व सम्बन्धी और पुरुषत्व सम्बन्धी दोनों वासनाओं का होना नपुंसकवेद कहा जाता है, अर्थात् दोनों से संभोग की इच्छा ही नपुंसकवेद
वेद के दो प्रकार हैं - 1. द्रव्यवेद, 2.भाववेद। द्रव्यवेद का निर्णय शरीर के बाह्य चिन्हों से किया जाता है, अंगोपांग नामकर्म के उदय से स्त्री पुरुष और नपुंसक अवयवों को द्रव्य–वेद कहते हैं। जैसे- पुरुष-द्रव्यवेद में पुरुष के चिह्न,
80 जिण अजिण तित्थऽतित्था, गिहि, अन्न सलिंग थी नर. नपुंसा।
पत्तेय सयंबुद्धा, बुद्ध बोहिय इक्कणिक्का य| - (नवतत्त्व प्रकरण, गाथा 55) 81 'विद्यते इति वेदः स्त्रिया वेदः स्त्रीवेदः, स्त्रियाः पुमांसं प्रत्यभिलाष इत्यर्थः
तद्धिपाकवेद्यं कर्मापि स्त्रीवेदः, पुरूषस्य वेदः पुरूषवेदः, पुरूषस्य स्त्रियां प्रत्यभिलाष इत्यर्थः, तद्विपाकवेद्यं कर्मापि पुरूषवेदः, नुपंसकस्य वेदो नपुंसकवेदः नपुंसकस्य स्त्रियं पुरूषं च प्रत्याभिलाष इत्यर्थः तद्विपाकवेद्यं कर्मापि नपुंसकवेदः । -प्रज्ञापना वृ.प.468-469 2 स्त्रियः – योषितः पुरूष प्रत्यभिलाषः स्त्रीवेदः । ७ नरस्य - पुरूषस्य स्त्रियं अभिलाषो नरवेदः । * नपुंसकस्य – षण्टस्य स्त्रीपुरूषौ प्रत्याभिलाषो नपुंसकवेदः। -चतुर्थ कर्मग्रन्थ स्वोपज्ञ टीका पृ. 129 कर्मग्रंथ चतुर्थ भाग – मुनि श्री मिश्रीमल जी म. पृ. 114
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