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हुए भी विषयों का सेवन करते हैं (अर्थात् उनसे अपने रागात्मक लगाव को छोड़ नहीं पाते। इन दोनों में स्पष्ट ही प्रथम प्रकार के लोग ही सच्चे सत्पुरुष हैं जो कर्म तो करते हैं किन्तु उनमें लिप्त नहीं होते हैं। यह ठीक वैसे ही है, जैसे अतिथि के रुप में आया कोई पुरुष विवाहादि कार्य में लगा रहने पर भी उस कार्य का स्वामी न होने से कर्ता नहीं होता ।
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1) 2)
वही, 229
सेवतेऽसेवमानोऽपि सेवमानो न सेवते ।
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अध्यात्मसार, प्रबंध -2, अधिकार 5, गाथा - 25
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