SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 189
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 164 तथा अप्राकृतिक, विकृत और उच्छृखल यौनाचार में रुचि रखना 'अनंगक्रीड़ा' है। इस विषय में जैनदर्शन में बड़ी सूक्ष्मता से विचार किया गया है। केवल दैहिक-क्रियाओं से कामाचार होता है -ऐसा नहीं है, बल्कि मानसिक तौर पर चिंतन, कथामण्डन अथवा मानसिक-स्तर पर क्रिया करना भी काम है। वचन-काम - मन की तरह कामयुक्त वचनों का आदान-प्रदान करने से, उन्हें सुनने से भी कामवासना जाग्रत होती है। इसके लिए जैनदर्शन में कामकथा या स्त्रीकथा को न करने का निर्देश दिया गया है। समकित के पांच दूषणों में से दो दूषण स्पष्ट रुप से इससे संबंधित हैं। 1. कांक्षा, 2. परपाषण्ड संस्तव (अर्थात् प्रशंसा)। इन दो दूषणों में और कुलिंगिसंस्तव के द्वारा पर की प्रशंसा करना, उसके प्रति आकर्षित होना नैतिक जीवन के प्रति अयथार्थ दृष्टिकोण हैं। अश्लील संगीत, कैसेट आदि को सुनना आदि चरित्र के पतन के कारण होते हैं, अतः सदाचारी पुरुष को अनैतिक आचरण करने वाले लोगों से अतिपरिचय या घनिष्ठ संबंध नहीं रखना ही योग्य माना गया है। वर्तमान युग में टीवी, चलचित्र, रेडियो, नाटक, उत्तेजित करने वाले साहित्य का वाचन आदि सभी वाचिक-कामवासना में आते हैं। तरह-तरह की पाश्चात्य कामुक धुनों पर बजने वाला संगीत मन और शरीर पर गहरा प्रभाव डालता है और मनुष्य के काम-अंगों को उत्तेजित करता है, अतः जैनदर्शन में उससे बचने को कहा गया कायिक-काम - कायिक-कामवासना को प्रोत्साहित करने वाली मुख्यतः पांच इन्द्रियां हैं, जिनका मालिक मन है। मन जो सूचनाओं का आदान-प्रदान करता है, उनका परिणाम शरीर पर होता है और शरीर कामोत्तेजनाओं का शिकार हो जाता है। कामोत्तेजना के भी दो प्रकार हैं -प्राकृत-कामोत्तेजना और ऐच्छिक-कामोत्तेजना। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy