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काम का मूल और उसके परिणाम -
शास्त्रकारों ने काम का मूल संकल्प को कहा है। संकल्प का अर्थ काम-अध्यवसाय है। दशवैकालिक में कहा है - जो व्यक्ति कामभोगों का निवारण नहीं कर पाता, वह संकल्प के वशीभूत होकर पद-पद पर विषाद पाता हुआ श्रामण्य जीवन का कैसे पालन कर सकता है। काम के अर्थ को स्पष्ट करते हुए शास्त्रकार कहते हैं कि संकल्प-विकल्पों से काम पैदा होता है। अगस्त्यसिंहचूर्णि० में संकल्प और काम का संबंध बताते हुए कहा गया है -
काम! जानामि ते रुपं, संकल्पात् किल जायसे,
न त्वां संकल्पयिष्यामि, ततो मे न भविष्यसि । अर्थात् – हे काम्! मैं तुझे जानता हूं। तू संकल्प से पैदा होता है। मैं तेरा संकल्प ही नहीं करूंगा, तो तू मेरे मन में उत्पन्न नहीं हो सकेगा। तात्पर्य यह है कि जब व्यक्ति काम का संकल्प करता है, अर्थात् मन में नाना प्रकार के कामभोगों की कामना करता है, तो वह कामोत्तेजक मोहक पदार्थों की वासना, तृष्णा या इच्छाओं को जाग्रत कर लेता है, तब उन काम्य पदार्थों को पाने का अध्यवसाय करता है, और उन्हीं के चिन्तन में रत रहता है, तब यह कहा जाता है कि वह काम-संकल्पों के वशीभूत (अधीन) हो गया है। उसका परिणाम यह आता है कि जब काम-संकल्प पूरे नहीं होते, या संकल्पपूर्ति में कोई रुकावट आती है या कोई उसका विरोध करने लगता है, अथवा इन्द्रिय-क्षीणता आदि विवशताओं के कारण काम का काम्यपदार्थों का उपभोग नहीं कर पाता, तब वह क्रोध करता है, मन में संक्लेश करता है, झुंझलाता है, शोक और खेद करता है, विलाप करता है, दूसरों को मारने-पीटने या नष्ट करने का प्रयास करता है। इस प्रकार की आर्त्त-रौद्रध्यान की स्थिति में वह
5 संकप्पोति वा छंदोति वा कामज्झवसायो – जिनदासचूर्णि पृ. 78 9 दशवैकालिकसूत्र - 2/1 60 दशवैकालिक, अगस्त्यसिंहचूर्णि, पृ. 41
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