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________________ 160 से खुजालने पर हुए दुःख को भी सुख मानता है, वैसे ही मोहातुर मनुष्य कामजन्य दु:ख को सुख मानता है। माव-काम - भाव-काम दो प्रकार के हैं - इच्छा काम और मदन-काम। 51 चित्त की अभिलाषा, आकांक्षा रुप काम को इच्छाकाम कहते हैं।52 इच्छा भी दो प्रकार की होती है - प्रशस्त और अप्रशस्त। धर्म और मोक्ष से सम्बन्धित इच्छा प्रशस्त है, जबकि युद्ध, कलह, राज्य की कामना या दूसरे के विनाश की कामना आदि इच्छाएं अप्रशस्त हैं। वेदोपयोग को मदनकाम कहते हैं, जैसे -स्त्री के द्वारा स्त्री-वेदोदय के कारण पुरुष के भोग की अभिलाषा करना, पुरुष द्वारा पुरुष-वेदोदय के कारण स्त्री के भोग की अभिलाषा करना तथा नपुंसकवेद के उदय के कारण नपुंसक द्वारा स्त्री और पुरुष दोनों के भोग की अभिलाषा करना तथा विषयभोग में प्रवृत्ति करना मदनकाम है। नियुक्तिकार कहते हैं –“विषयसुख में आसक्त एवं कामराग में प्रतिबद्ध जीव को धर्म से गिराते हैं। पण्डित लोग काम को एक प्रकार का रोग कहते हैं। जो जीव कामों की प्रार्थना (अभिलाषा) करते हैं, वे अवश्य ही रोगों की प्रार्थना करते हैं। 57 " श्रमणसूत्र - 49 "दुविहा य भावकामा - इच्छाकामा मयणकामा। - नियुक्ति गाथा. 162 ५ तत्रेषणमिच्छा सैव चित्ताभिलाषरूपकामा इतीच्छाकामा – वही, गा. 162 हा.टी. पृ. 85 " इच्छां पसत्थभपसत्थिगा य -----| नि.गा. 163 54 तत्थ पसत्था इच्छा जहा धम्म कामयति मोक्खं कामयति, अपसत्था इच्छा रज्जं वा कामयति जुद्धं वा कामयति एवमादि इच्छाकामा। - जि.चू., पृ. 76 5................. मयणंमि वेयउवओगी। - नि. गा. 163 56 जहा इत्थी इत्यिवेदेण पुरिस पत्थेइ, पुरिसोवि इत्थी, एवमादी – जि.चू., पृ. 76 " नियुक्ति, गाथा- 164-165 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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