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________________ 142 जब-जब मानव युद्ध से त्रस्त हुआ, तब-तब शान्ति की अधिकतम आवश्यकता अनुभव की गई। - बीसवीं शताब्दी से पूर्व विश्व-शांति के सामूहिक प्रयास बहुत कम हुए। कलिंग-युद्ध के पश्चात् सम्राट अशोक ने युद्ध का परित्याग कर अहिंसा के मार्ग पर चलने का प्रण किया, बाद में एशिया, अफ्रीका, यूरोप आदि क्षेत्रों में युद्धोपरान्त जो सन्धियाँ हुइ, उनका उद्देश्य द्विपक्षीय-विवाद को समाप्त कर क्षेत्रीय-शान्ति कायम करना था। प्रथम विश्वयुद्ध की वीभत्सता को दृष्टिगत रखते हुए युद्ध टालने एवं शांति कायम करने हेतु 'लीग ऑफ नेशन्स' की स्थापना हुई, लेकिन युद्ध संकट फिर भी न टल सका। द्वितीय विश्वयुद्ध में महाविनाश का सामना करना पड़ा। विश्व में शान्ति की स्थापना तथा परस्पर विवादों के हल हेतु संयुक्तराष्ट्र संघ की स्थापना की गई। संयुक्तराष्ट्र संघ के उद्देश्यों में विश्व-शांति तथा सुरक्षा को कायम रखना एवं शान्ति के लिए उत्पन्न खतरों को सामूहिक सुरक्षा द्वारा रोकना प्रमुख है। __ अभय और शांति मानव-जाति की शाश्वत अभिलाषा रही है। इसे जीवन के श्रेष्ठतम मूल्यों में रखा जाता है। युद्ध कभी अच्छा नहीं होता, और शांति कभी भी बुरी नहीं होती। ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार शांति शब्द का अर्थ है- युद्ध से मुक्ति। दो युद्ध-शक्तियों में शांति-संधि, अर्थात् युद्ध की समाप्ति तथा युद्धरत राष्ट्रों में संधि कर शांति स्थापित की जा सकती है। अभय और शान्ति केवल दर्शन ही नहीं है, अपितु यह एक आचरण है। वह संकटकालीन स्थिति से उबरने का उपाय भी है। अभय में असीम शक्ति है। उस शक्ति का जागरण तभी सम्भव हो सकता है, जब उसका बोध हो, प्रशिक्षण हो और प्रयोग हो। आज हम यह देखते हैं कि विश्व का प्रत्येक राष्ट्र अपनी सुरक्षा के साधनों के रूप में अस्त्र-शस्त्रों की दौड़ में पड़ा हुआ है और अपने बजट का पचास प्रतिशत से अधिक भाग केवल सुरक्षा के नाम पर खर्च करता है। यदि अभय और मैत्री-भाव का विकास हो सके तो यह राशि मानव कल्याण में काम आ सकती है। इस विशाल राशि से गरीबी और भूख की पीड़ा को मिटाया जा सकता है, इसलिए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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