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________________ दिन पूर्व छाछ पी थी, जब उसे यह बताया गया कि उस छाछ में सांप का जहर था, तो सुनते ही वह (भय के कारण ) मृत्यु को प्राप्त हो गई। उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हम कह सकते हैं कि अभय बनने के लिए सदा यह चिन्तन करना चाहिए कि 'मेरा किसी से बैर नहीं है।' जब तक हिंसा, असत्य और संग्रह में आसक्ति है, तब तक मानव भयभीत रहता है। अभय को प्राप्त करने के लिए इनसे आसक्ति मिटाना आवश्यक है। 'जो प्रमादी होता है, उसको सब प्रकार का भय रहता है। जो अप्रमादी होता है, उसे किसी प्रकार का भय नहीं रहता। जब अप्रमाद आता है, तब भय समाप्त हो जाता है । अभय वस्तुतः प्रज्ञा से आता है। जब प्रज्ञा जागती है, तो व्यक्ति वर्तमान में जीना स्वीकार कर लेता है । जो प्राप्त है, उसे स्वीकार कर लेना, घटना को घटना के रूप में स्वीकार कर लेना ही जीवन की वास्तविकता है। 135 एक बार एक किसान से किसी ने पूछा 'क्या इस बार मूंग बोया है?' किसान ने जवाब दिया – “नहीं, मुझे भय था कि शायद बारिश नहीं होगी।" फिर उस व्यक्ति ने पूछा - "क्या तुमने मक्का बोया?" किसान बोला - "नहीं, मुझे भय है कि कीड़े-मकोड़े न खा जायें।" फिर उस आदमी ने पूछा - "तुमने बोया क्या है ? " किसान ने कहा – “कुछ भी नहीं, मैंने कोई खतरा या रिस्क (Risk) उठाई ही नहीं । " यह निष्क्रियता भय का परिणाम है । अभय की अवस्था को प्राप्त करने के लिए थोड़ा पुरुषार्थ और थोड़ा विश्वास जरूरी है । भक्तामर स्तोत्र के अन्तिम भाग में आचार्य मानतुंग ने कहा है – यदि भयमुक्त बनना है, तो प्रभु के चरणों की शरण लो। प्रभु की शरण में रहने पर कोई भय नहीं होगा । अर्हत और सिद्ध परमात्मा अभय को देने वाले हैं। अतः जो अभय की साधना करना चाहता है, उसे राग-द्वेष से रहित, कषायों से रहित और आसक्ति से रहित होकर जीवन में व्याप्त संपूर्ण भ्रमणाएं, जो भय को देने वाली हैं उन्हें पुरुषार्थपूर्वक हटाने का प्रयास करना है। " सव्वओ पमत्तस्स भयं सव्वओ अपमत्तस्स नत्थि भयं आचारांगसूत्र 1/3/4 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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