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होता । भय, मूर्च्छा और असत्य में होता है । प्रेक्षा के द्वारा हमारी मूर्च्छा का चक्र टूटता है। जब मूर्च्छा का चक्र टूटता है, तो भय अपने-आप समाप्त हो जाता है। 3. मन्त्रों का जाप
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जैन - परम्परा, वैदिक परम्परा, बौद्ध - परम्परा सब में भय का निवारण करने के लिए प्रभावशाली मन्त्रों का प्रयोग किया जाता है । कुछ लोग सर्प से डरते हैं, कुछ रात्रि में डरावने स्वप्न देखते हैं, तो डर जाते हैं, कुछ लोग सोते-सोते ही डर जाते हैं और कुछ अकारण ही डर जाते हैं। इन अवस्थाओं से बचने के लिए सैकड़ों 'अभय मन्त्रों' का विकास हुआ है और उनका प्रयोग भी बहुत होता है । भक्तामर और कल्याण मंदिर स्तोत्र में सभी प्रकार के भय के निवारण के लिए मंत्र विद्यमान है । यथा - ॐ ह्रीं श्रीं क्रौं क्लीं इवीरः रः हं हः नमः स्वाहा " मंत्र । डॉ. सागरमलजी जैन द्वारा लिखित पुस्तक 'जैनधर्म और तान्त्रिक साधना' में भी भक्तामर स्तोत्र की नवीं गाथा में उल्लेखित सात भय निवारण मंत्रों का वर्णन प्राप्त होता है। इस प्रकार 'ऊँ श्रीं अर्हं मल्लिनाथाय नमः' मंत्र से चोर आदि भय दूर होता है । 'ऊँ ह्रीं श्रीं अर्ह ऋषभदेवाय नमः' मंत्र से सब प्रकार का भय दूर होता है, और 'णमो अभयदयाणं’ मंत्र से अभय की शक्ति का विकास होता है। कई लोग ताबीज और जड़ी-बूटियों के द्वारा भी भय का निवारण करते हैं। अधिक भय लगता है, तो लोग हाथ में ताबीज बांध लेते हैं, जिससे उनका भय समाप्त हो जाता है, या कम हो जाता है। इस प्रकार, हम भय को दूर कर अभय की साधना कर सकते हैं ।
4. चरित्र का विकास
व्यक्ति के काम करने वाली शक्ति ही हमारे चरित्र के विकास की शक्ति है, हमारे चरित्र का बल है और वह बल जैसे-जैसे बढ़ता जाता है, आदमी में अभय का विकास होता है । जब अभय का बल बढ़ता है, तो अनेक मनोकामनाएँ जाने-अनजाने
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49 जैनधर्म और तान्त्रिक साधना पृ. 184
50 मंत्र : एक समाधान
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आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. 226-229
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