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________________ 121 आकांक्षा (Desires) - आकांक्षा, अर्थात् चाह, कामना, सुविधाओं या स्वहित की पूर्ति की चाह। ये सारे आवेग भय के कारण भी होते हैं। अगर कोई भय न हो, तो व्यक्ति महत्त्वाकांक्षी भी नहीं होगा। सारी आकांक्षाएँ आदमी की भय-वृत्ति का प्रतिबिम्ब हैं। हमें मरने का भय है, इसीलिए जीने की आकांक्षा है, असुविधा का भय है, तो सुविधा की आकांक्षा है। असुरक्षा का भय है, तो सुरक्षा की आकांक्षा है। अपयश का भय है, तो यश की आकांक्षा है। असफलता का डर है, तो सफलता की कामना है। वस्तुतः, हर प्रकार की चाह, तृष्णा, कामना 'भय' का ही परिणाम है। जिसे अभय उपलब्ध है, वह सर्व कामनाओं से रहित है। ___ जिसे जितनी ज्यादा प्राप्ति की लालसा है, उसे उतना ही ज्यादा भय है। यही कारण है कि एक गरीब से एक अमीर ज्यादा भयभीत है। एक साधारण आदमी बिना बॉडीगार्ड (Body Guard) के रहता है, किन्तु राजा या नेता नहीं, क्योंकि उसकी कामनाओं का संसार ज्यादा है, प्राप्ति की लालसा ज्यादा है। यह आकांक्षा जीवनपर्यन्त योजनाओं का निर्माण कराती रहती है और ये तरह-तरह की योजनाएँ आदमी को निरंतर अशांत, बैचेन और तनावग्रस्त बनाए रखती हैं। कांक्षा भय से उत्पन्न होती है और कांक्षा-पूर्ति के साधनों का संचय सुरक्षा की मांग करता है तथा सुरक्षा की कामना पुनः भय उत्पन्न करती है। विचिकित्सा - विचिकित्सा शब्द का अर्थ होता है- आलोचक-दृष्टि। जहाँ भय है, वहाँ कपट है, माया अर्थात् प्रदर्शन है, दिखावा है, कथनी-करनी में भिन्नता है। जो आदमी बार-बार साहसी होने का प्रयास करता है, वास्तव में वह आदमी बहुत डरा हुआ है। एक डरपोक अपने आपको बहादुर बताने का प्रयास करता है, निडर नहीं। यह एक मनोवैज्ञानिक-सत्य है कि आदमी जैसा होता है, स्वयं को उससे उल्टा प्रदर्शित करता है। एक ईमानदार व्यक्ति के मन में जरा भी यह ख्याल नहीं आता है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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