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उसके मन में कल्पना जागी –'हो सकता है रात को नींद में मैं दाँतों को निगल गया होऊँगा।' तत्काल उसके पेट में असह्य पीड़ा होने लगी। वह पीड़ा से छटपटाने लगा। घर वाले आए, डॉक्टर को बुलाया गया। डॉक्टर ने कहा -"ऑपरेशन होगा।" कल्पना ही कल्पना में सारी स्थिति बिगड़ गई। पेट में असह्य पीड़ा हो रही थी, वह यथार्थ तो थी, परन्तु थी कल्पनाजनित। कुछ देर बाद वही बच्चा हाथ में दाँतों की जोड़ी लिए आ पहुँचा। दाँतों को देखते ही उस आदमी का दर्द गायब हो गया और वह स्वस्थ हो गया। घरवाले देखते ही रह गए।
ऐसा हमारे जीवन में प्रत्यक्ष अनुभव होता है कि रोग मारता नहीं, रोग का भय मारता है।
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