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________________ करने के लिए श्रम करता है, कड़ी मेहनत करता है, खून-पसीना एक करता है, तब कहीं जाकर वह जीवन जीने के लिए धन एकत्रित कर पाता है । प्रतिस्पर्धा के इस युग में आजीविका का भय हर साधारण मनुष्य को रहता है। प्रत्येक मनुष्य सुख-सुविधा के लिए अधिकाधिक कमाना चाहता है । साधन सीमित हैं और इच्छाएँ असीम हैं, अतः इच्छाओं की पूर्ति के लिए और जीवन-यापन के लिए धन के संचय करने का जो भय बना रहता है, वह आजीविका-‍ - भय है । 6. अपयश - भय - 113 जगत्, समाज, परिवार आदि में अपयश होने या निंदित होने के भय को अपयश - भय कहते हैं । आजीविका के प्रश्न का समाधान होते ही आदमी यश-प्रतिष्ठा के लिए जीना शुरू कर देता है । प्रत्येक आदमी स्वयं को प्रतिष्ठित देखना चाहता है और इस प्रतिष्ठा और आदर-सत्कार में कहीं कोई कमी न आए, यह चाह ही उसे इस भय से ग्रस्त करती है। आदमी सदा अपयश से डरता है । वह सदा यह चाहता है कि उसकी साख बनी रहे, उसकी मान-प्रतिष्ठा बनी रहे, उसका यश खंडित न हो। वह अपने यश को बनाए रखने के लिए झूठे मानदण्डों को भी अपनाता है, कष्ट भी सहता है और अनेक कठिनाइयों का सामना करता है। इस भय से प्रताड़ित व्यक्ति कभी - कभी बहुत अनर्थकारी कार्य भी कर बैठता है 1 7. मरण-भय 1 आदमी बीमारी से नहीं मरता, आदमी मरता है - मृत्यु के भय से । किसी को कह दिया जाए कि उसके शरीर में कैंसर का रोग है, यह सुनकर ही वह हताश को मरण के ओर अग्रसर होने लगेगा। आदमी मृत्यु के डर से ही मरता है, मृत्यु से नहीं । यही भय मरण-भय के नाम से जाना जाता है । Jain Education International एक वृद्ध भोले आदमी ने रात को सोते समय दाँतों को एक कटोरे में रख दिया। एक बच्चा वहाँ आया और दाँतों को खिलौना समझकर ले गया। वह आदमी सुबह उठा, और उसने अपने पास में रखे दाँतों को ढूंढा, लेकिन वे नहीं मिले। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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