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________________ भयभीत बनता है। भयमोहनीय कर्म के उदय से शरीर में रोमांच, कंपन, घबराहट आदि क्रियाऐं होती हैं, 18 जो भय की उत्पत्ति की सूचक हैं । आचारांगनिर्युक्ति की टीका में मोहनीयकर्म के उदय को भयसंज्ञा का कारण बताया है। 19 मोहनीय कर्म दर्शनमोहनीय कर्म सम्यक्त्वमोहनीय मिश्रमोहनीय मिथ्यात्वमोहनीय कषाय 18 तत्त्वार्थसार 2/26 19 आचारांगनिर्युक्ति टीका, गाथा 26 चारित्रमोहनीय कर्म हास्य रति अरति भय शोक जुगुप्सा स्त्रीवेद पुरुषवेद नपुंसकवेद Jain Education International 100 3. भयोत्पादक वचनों को सुनकर I S S श्रवणेन्द्रिय द्वारा भयोत्पादक वचनों को जब सुनते हैं, तो मन एवं शरीर में भय का आवेग जाग्रत होता है। व्यक्ति भयभीत हो जाता है, उसके शरीर से पसीना निकलने लगता है। इस प्रकार की स्थिति भी भय की सूचक है। रात के अंधेरे में जब तेज हवा के झोंकों से शा S S की तीव्र ध्वनि होती है, जोरों से बिजली कड़कने की आवाज होती है, बादलों की तेज गड़गड़ाहट होती है, तब मन में भय का संचार होता है । रात्रि में रोने की आवाज या किसी के कदमों की आहट, मन को भय से विचलित कर देती है, भयग्रस्त बना देती है। इस स्थिति में व्यक्ति इतना डर जाता है कि कोई उसें आवाज भी लगाए या छुए, तो उसके मुख से चीख तक निकल जाती है । डरावने चलचित्र, या सीरियल और Horror - For Personal & Private Use Only नोकषाय www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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