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________________ VI आभार व्यक्त करती हूँ, जिन्होंने समय-समय पर उचित मार्गदर्शन और सहयोग देकर मुझो प्रोत्साहित किया है। जिनके सान्निध्य में रहकर जीवन के अनेक क्षेत्रों में मार्गदर्शन मिलता रहा है, हिन्दी व अंग्रेजी भाषा के ज्ञान में वृद्धि हो रही है, ऐसी मेरी धर्मबहिनें आदरणीय मुमुक्षु डॉ. शांता जैन एवं सुश्री वीणा जैन का स्नेहिल सहयोग व प्रेरणा सदैव मिलती रही है। वे मेरी अपनी हैं, उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर परायेपन की प्रतीति कराने का अक्षम्य अपराध मैं नहीं करूंगी। आप दोनों का सहयोग, स्नेह एवं मार्गदर्शन सदैव मुझे मिलता रहे। शोधकार्य को पूरी लगन के साथ करने के लिए प्रेरित व प्रमाद को दूर करने में मेरे भाई निखिल जैन, अखिल जैन, राहुल कांकरिया, शीतल जैन एवं अन्य परिजन जो भी सहयोगी रहे, उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर उनकी आत्मीयता का अवमूल्यन नहीं करूंगी। इस कार्य का श्रेय जैन धर्मदर्शन के मूर्धन्य विद्वान, आगम मर्मज्ञ, भारतीय संस्कृति के पुरोधा डॉ. सागरमलजी जैन को है। जिन्होंने इस शोधप्रबन्ध के मेरे सपने को साकार करने में पूर्ण रूपेण सहयोग दिया और विषयवस्तु को अधिकाधिक प्रासंगिक, उपादेय बनाने हेतु सूक्ष्मता से देखा, परखा और आवश्यक संशोधनों के साथ मार्गदर्शन प्रदान किया। यद्यपि वे नाम-स्पृहा से पूर्णतः विरत हैं तथापि इस कृति के प्रणयन के मूल आधार होने से इसके साथ उनका नाम सदा- सदा के लिए स्वतः जुड़ गया है। वे मेरे शोध-प्रबन्ध के दिशा-निर्देशक ही नहीं है वरन् मेरे आत्मविश्वास के प्रतिष्ठाता भी है। उनका वात्सल्यभाव एवं असीम आत्मीयता मेरे जीवन का गौरव है जो आजीवन बना रहे, यही प्रभु से प्रार्थना है ... 'मध्यप्रदेश की काशी' के नाम से प्रसिद्ध, प्राकृतिक सौंदर्य के मध्य स्थित सुरम्य ‘प्राच्य विद्यापीठ' का विशाल पुस्तकालय एवं सुविधाएँ युक्त शान्त वातावरण, इस लक्ष्य की प्राप्ति में सर्वाधिक सहायक सिद्ध हुआ है। इसी प्रकार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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