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________________ शासन के प्रति, जिन्होनें अपने साधना के माध्यम से तनावमुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया। इस शोध-कार्य की सम्पन्नता महान आत्म-साधिका, श्री विनीतप्रज्ञाजी म. सा. की दिव्य कृपा के बिना संभव नहीं थी। सर्वप्रथम उन्होंने ही मेरे अंदर रहे धर्मबीज को सींचने का प्रयत्न किया था और मुझे जैनधर्म में शोध-कार्य करने के लिए प्रेरित किया था। कालचक्र के क्रूरप्रहार ने आज उन्हें हमसे अलग कर दिया, किन्तु उनकी अदृश्य प्रेरणा की गूंज ही मेरे आत्मविश्वास का अटल आधार बनी हुई है। उनका मंगलमय आशीर्वाद मेरे जीवन पथ को सदा आलोकित करता रहे, इन्हीं आकांक्षाओं के साथ उन आराध्य चरणों में अनन्तशः वंदना समर्पित ....। जिनके आशीर्वाद एवं स्नेह की मुझे सदा अपेक्षा है; मेरी दादीजी श्रीमती कमलाबाई जैन। मेरे इस शोधकार्य को पूर्ण करने का श्रेय उन्हीं की दी गई प्रेरणा व प्रोत्साहन को जाता है। मेरे पिता श्रीमान नरेन्द्रकुमार जी जैन एवं माता श्रीमती सरला जैन का आशीर्वाद एवं प्रेम भी मुझे संबल देता रहा। इनकी पुत्री होना मेरे लिए गौरव का विषय है। जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के कुलसचिव एवं जीवन विज्ञान के विद्वान प्रो. जे.पी.एन मिश्राजी, जिन्होंने मुझे शुरूआत में ही शोधकार्य की सही पद्धति से अवगत कराया, वह प्रतिपल स्मरणीय है। उनका सहयोग व शिक्षा ही मेरे शोधकार्य का प्राण है। आपका स्नेह, सहयोग एवं मार्गदर्शन सदैव मिलता रहे, यही शुभाकांक्षा। इसके अतिरिक्त मैं जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति समणी मंगलप्रज्ञाजी, वर्तमान कुलपति समणी चारित्रप्रज्ञाजी, पू समणी कुसुमप्रज्ञाजी, समणी चैतन्यप्रज्ञाजी, समणी ऋतुप्रज्ञाजी ......... आदि के प्रति भी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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