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आदि तनाव उत्पत्ति के हेतु ही हैं, फिर भी जीवन की सुख-सुविधा के लिए धनार्जन करना ही पड़ता है। प्रत्येक व्यक्ति मुनि जीवन धारण नहीं कर सकता है, तो ऐसी स्थितियों में तनाव के कारणों का निवारण कैसे हो सकता है ? तनाव प्रबंधन कैसे किया जा सकता है।
इसके उत्तर में जैनदर्शन कहता है कि -जीवन को अध्यात्म के साथ जीओ। यदि अर्थ को जीवन निर्वाह का साधन मात्र मानें, उस पर ममत्त्व बुद्धि का आरोपण न करे, तो वह धन तनाव-उत्पत्ति का कारण नहीं होगा। इसी बात को ध्यान में रखते हुए आचार्य महाप्रज्ञजी ने 'महावीर का अर्थशास्त्र' नामक पुस्तक में आधुनिक अर्थशास्त्र के मुख्य तत्त्वों इच्छा, आवश्यकता, व मांग में निम्न चार बातों को और जोड़ दिया है - सुविधा, वासना, विलासिता और प्रतिष्ठा।
व्यक्ति को अर्थ तीन बातों के लिए चाहिए -प्रथम अपनी माँग (अनिवार्य आवश्कता) को पूरा करने के लिए, दूसरे अपनी प्रतिष्ठागत आवश्यकताओं को पूरी करने के लिए व तीसरे इच्छाओं को पूरा करने के लिए।
तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो माँग (जैविक आवश्यकता) व्यक्ति पर कम दबाव डालती है, क्योंकि उसकी माँगें उतनी ही होती हैं, जितनी उसे अति-आवश्यकता लगती है। अति आवश्यकताएं भी उनकी पूर्ति के लिए व्यक्ति को अर्थ उपार्जन के लिए प्रेरित करती हैं। किन्तु जब वे आवश्यकताएँ इच्छाएँ बन जाती हैं, तो सभी इच्छाओं की पूर्ति असम्भव होने से वे तनाव के स्तर को बढ़ा देती हैं।
यद्यपि जैविक एवं सामाजिक आवश्यकताएं तो पूरी हो सकती हैं, किन्तु जब उन आवश्यकता की जगह इच्छाएं ले लेती हैं, तो उनकी पूर्ति असम्भव हो जाती है, क्योंकि जैनदर्शन के अनुसार इच्छाएं तो आकाश के समान अनन्त
॥ महावीर का अर्थशास्त्र, आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. 17
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