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________________ तनावमुक्ति के लिए राग-द्वेष का त्याग कहा गया है। उसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जिसका मोह (राग) समाप्त हो जाता है, उसका दुःख समाप्त हो जाता है। 9 मोह के विसर्जन तथा राग- - द्वेष के उन्मूलन से एकान्त सुख रूप मोक्ष की उपलब्धि होती है। ° रागग-द्वेष की समाप्ति होने पर ही तनावमुक्ति होती है। जैनदर्शन में राग-द्वेष से जनित क्रोध, मान, माया, लोभ रूप मलिन चित्तवृत्तियों को कषाय कहा गया है। उत्तराध्ययनसूत्र एवं उसकी टीकाओं में कषायों के स्वरूप की स्पष्ट व्याख्या उपलब्ध होती है। इसमें क्रोधादि कषायों से विमुक्ति की चर्चा अनेक स्थलों पर की गई है।" कषाय क्या है ? वह कैसे तनाव उत्पन्न करता है, इसका विस्तार से विवेचन तो आगे के अध्याय में किया जाएगा। यहाँ इतना बताना अनिवार्य है कि उत्तराध्ययन सूत्र में कषाय के निम्न चार भेद प्रतिपादित किये गये है - क्रोध, मान, माया और लोभ । 72 ये चार कषाय प्रत्येक व्यक्ति में स्वभाविक रूप से होती है, इन पर विजय प्राप्त करने वाला ही तनाव रूपी पिंजरे को तोड़ पाता है । उत्तराध्ययन सूत्र में कषाय को अग्नि की उपमा दी है, जो आत्मा के सद्गुणों को जलाकर नष्ट कर देती है। 73 व्यक्ति के सद्गुण ही उसके जीवन में शांति स्थापित करते हैं और इनके नष्ट होने पर तनावग्रस्त हो जाता है । (ग) तत्वार्थसूत्र और उसकी टीकाओं में कषायों का स्वरूप और उनका तनावों से सह- सम्बन्ध 69 उत्तराध्ययन सूत्र 32/8 70 उत्तराध्ययन सूत्र 32 / 2 - जैन दर्शन के अनुसार जो बंध के हेतु हैं, वही तनाव के कारण भी है । दूसरे शब्दों में कहें तो मोक्ष प्राप्ति में बाधक तत्व ही तनाव उत्पक्ति के हेतु हैं और मोक्ष प्राप्ति के साधन ही तनावमुक्ति के उपाय हैं । 34 " उत्तराध्ययन सूत्र 1/9, 2/26, 4/12 72 उत्तराध्ययन सूत्र 4 / 12, 29 / 88 से 71 73 उत्तराध्ययन सूत्र - 32/7 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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