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________________ तनाव रूपी शत्रु से लड़ने का एक मात्र शस्त्र अध्यात्मिक जीवनदृष्टि है। हमारी आत्मा में सद्गुणों की असीम शक्तियाँ है। हमें उन शक्तियों को जागृत करने की आवश्यकता है। वे शक्तियाँ ही हमें तनावरूपी शत्रु से विजय प्राप्त कराने वाली है। राजिन्दरसिंह ने अपनी कृति आत्मशक्ति में लिखा है कि -"हमारे अन्तर में एक शक्ति है, ऊर्जा है जो हमें भय पर विजय पाने के योग्य बनाती है। 52 हमें आत्म-ऊर्जा से तनावों को दूर करना है। अध्यात्म से ही तनावमुक्ति सम्भव है। आध्यात्म ही एक मात्र उपाय है- वैयक्तिक एवं वैश्विक शांति का। आत्मशक्ति को जागृत करने का अर्थ है आत्मा पर चढ़े अज्ञान या मिथ्शत्व के आवरण को हटा कर आत्मगुणों को जागृत करना। अनन्त-ज्ञान, निःस्वार्थ करूणा, अभय, आनंद, इच्छाओं पर विजय आदि आत्मा के ही गुण हैं। ये गुण प्रत्येक प्राणी में निर्द्वन्द्व आध्यात्मिक सुख का अनुभव कराने में एवं तनावों को समाप्त करने में समर्थ है। आचारांग में भी कहाँ गया है - हे पुरूष! अपना (आत्मा का) निग्रह कर। इसी विधि से तू दुःख से मुक्ति प्राप्त कर सकेगा।53 52 आत्मशक्ति, राजिंदरसिंह, पृ. 1 53 आचारांगसूत्र – 1/3/3/126 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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