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________________ 355 ही योग है। जैनदर्शन में मन, वचन, काया की प्रवृत्तियों को योग कहा गया है और तनावमुक्ति के लिए योग-निरोध आवश्यक है और यही ध्यान का लक्ष्य है। जैनदर्शन में ध्यान के चार प्रकार कहे गए हैं। उनमें से आर्तध्यान और रौद्रध्यान तनाव के हेतु हैं तथा धर्मध्यान और शुक्ल ध्यान से तनावमुक्ति सम्भव है। अतः सम्यक् ध्यान तो धर्मध्यान या शुक्लध्यान ही है। इस अध्याय में इन चारों ध्यानों के स्वरूप का विस्तार से विवेचन किया गया है। यहाँ मैंने स्थानांगसूत्र और ध्यानशतक के आधार पर इन ध्यानों के लक्षण, साधन आदि पर विचार भी किया है। तनाव का एक कारण ममत्वबुद्धि है। 'पर' पर 'स्व' (अपनेपन) का आरोपण ही व्यक्ति के दुःखों का मूल कारण है। इसीलिए आचारांगसूत्र में ममत्व के स्वरूप की जो चर्चा की गई है उसी के आधार पर ममत्व के त्याग द्वारा एवं तृष्णा पर प्रहार करके ही व्यक्ति तनावमुक्त हो सकता है। तनाव के मूल कारणों में एक कारण इच्छाएँ एवं आकांक्षाएँ हैं, अतः जैनधर्म में तनावमुक्ति के लिए इच्छा निर्मूलन पर जोर दिया गया है। इच्छाएँ आकाश के समान अनन्त हैं, जिनका कोई अन्त नहीं है। वह व्यक्ति जो इच्छाओं से ग्रस्त है, तनाव का भी अन्त नहीं कर सकता है, क्योंकि इच्छाएँ, आकांक्षाएँ व्यक्ति के मन को सदैव असंतुष्ट बनाए रखती हैं और असंतुष्ट मन सदैव तनावग्रस्त रहता है। पंचम अध्याय का यही विवेच्य विषय रहा है। प्रस्तुत शोध प्रबन्ध के छठवें अध्याय में जैनदर्शन के आधार पर तनावों के निराकरण के उपाए सुझाए गए हैं। __इस षष्टम अध्याय में सम्यक्-दर्शन, सम्यक्-ज्ञान और सम्यक्-चारित्र का विस्तार से विवेचन किया गया है। तत्त्वार्थसूत्र में भी सम्यक्-दर्शन, सम्यक्-ज्ञान और सम्यक्-चारित्र इन तीनों को सम्मिलित रूप से मोक्ष मार्ग कहा गया है। इसी आधार पर यह माना गया है कि उपर्युक्त तीनों -सम्यक् दर्शन, ज्ञान एवं चारित्र की साधना ही तनावों के निराकरण का सम्यक् उपाय है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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