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________________ 354 आत्मा, चतुर्विध कषाय, चतुर्विध मन, षटविध-लेश्या आदि की अवधारणाओं का तनावों के साथ क्या सह-सम्बन्ध है, इस विषय पर प्रकाश डाला है। साथ ही जैनधर्म के अनुसार मन के स्वरूप का भी वर्णन किया है। प्रस्तुत पंचम अध्याय में तनाव प्रबंधन की विधियों का उल्लेख किया गया है। तनाव प्रबंधन की सामान्य विधियों के अन्तर्गत इस अध्याय में शारीरिक विधियों, भोजन सम्बन्धी विधियों, मानसिक विधियों आदि का विस्तार से विवेचन किया गया है। शारीरिक विधियों के अन्तर्गत योगासन, प्राणायाम, कायोत्सर्ग आदि विधियों के द्वारा तनाव को कैसे दूर किया जा सकता है, यह बताया है। तनाव मानसिक उत्पीड़न की अवस्था है, अतः तनाव से मुक्ति के लिए मानसिक स्तर पर भी कुछ प्रयोग आवश्यक प्रतीत होते हैं, जैसे- एकाग्रता, योजनाबद्ध चिन्तन, सकारात्मक सोच, आत्मविश्वास आदि, साथ ही इनके द्वारा तनावमुक्ति कैसे हो सकती है, यह भी बताया है। मनोवैज्ञानिक विधि के अन्तर्गत प्रत्यक्ष एवं परोक्ष इन दो विधियों द्वारा तनावमुक्ति का प्रयास किया जाता है। साथ ही प्रत्यक्ष विधि के प्रयोग से तनाव पूर्णतः समाप्त हो जाता है, यह स्पष्ट किया गया है। यह ज्ञाता-द्रष्टाभाव और साक्षीभाव से जीने पर ही संभव होता है। परोक्ष विधि के अन्तर्गत तनाव को पूर्णतः समाप्त तो नहीं किया जा सकता, अपितु कम अवश्य किया जा सकता है। जैनधर्म में भी तनाव प्रबंधन की विधियाँ प्राचीनकाल से प्रयोग में रहीं हैं। वस्तुतः जैनदर्शन में तनाव के मूल कारणों अर्थात् राग-द्वेष को ही समाप्त करने का प्रयास किया जाता है। सर्वप्रथम इसी स्थिति में आत्म-परिशोधन या विभाव दशा को समाप्त करने का प्रयास होता है। जैनदर्शन के अनुसार ध्यान को मोक्ष प्राप्ति अर्थात् समग्र दुःखों से मुक्ति का अन्तिम साधन माना गया है। अतः प्रस्तुत अध्याय में ध्यान और योग साधना के द्वारा, तनावमुक्ति कैसे हो सकती है, इस पर प्रकाश डाला गया है। योगदर्शन में योग को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि चित्तवृत्ति का निरोध Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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