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________________ 351 आकांक्षाओं आदि के अपूर्ण रहने पर या नवीन इच्छाओं आदि के उत्पन्न होने पर मन दुःखी या तनावग्रस्त हो जाता है। मनोवैज्ञानिकों ने मन के भी तीन स्तर माने हैं। इन स्तरों के आधार पर यह समझाया गया है कि अचेतन मन में रही हुई दमित इच्छाएँ और वासनाएँ अथवा जैनदर्शन की दृष्टि में उपशमित एवं सत्ता में रहे हुए कर्म, अवचेतन मन के द्वारा मन के चेतन स्तर पर अर्थात् उदय में आते हैं और इस चेतन स्तर पर तनाव उत्पन्न करता रहता है। इस प्रकार मन के तीनों स्तर तनावों से जुड़े हुए वस्तुतः जैनदर्शन में ही नहीं, अपितु बौद्ध एवं योगदर्शन में भी तनावों की स्थिति के आधार पर क्रमशः मन की चार, चार और पाँच अवस्थाओं का वर्णन मिलता है। जो लगभग समानान्तर है। हमने प्रस्तुत शोधप्रबन्ध के इस तीसरे अध्याय में उनकी भी तुलनात्मक दृष्टि से चर्चा की है। बौद्धदर्शन में तो चित्त के चैत्तसिक धर्मों या चित्त के कार्यों के बावन प्रकार बताए गए हैं, जिनको मैंने तनावों के सह-सम्बन्ध के आधार पर समझाया है और यह बताया है कि कौन से चैत्तसिक धर्म तनावों को जन्म देते हैं और कौन से चैत्तसिक धर्म तनावों से मुक्त करते या मुक्त रहते हैं। इस शोध-प्रबन्ध के चौथे अध्याय में जैन धर्मदर्शन की विविध अवधारणाओं का तनाव से सह-सम्बन्ध बताया गया है। सर्वप्रथम जैनदर्शन की त्रिविध आत्मा की अवधारणा के अनुसार यह बताया गया है कि बहिरात्मा तनावग्रस्त आत्मा है, अन्तरात्मा तनावमुक्ति के लिए प्रयास करती है, जबकि परमात्मा तनावमुक्त है। दूसरे शब्दों में अन्तरात्मा की अवस्था को तनावमुक्ति की साधना की प्रक्रिया भी कहा जा सकता है और उसका यह प्रयास सफल होने पर साधक या व्यक्ति पूर्णतः तनावमुक्ति की अवस्था को प्राप्त करता है, जिसे जैनदर्शन में परमात्मा कहा गया है। आत्मा की उपयोग रूप या Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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