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सत्य को स्वीकार करता है, चाहे वह सत्य उसके दुःख का कारण बने। सत्य को स्वीकार करने से, उस सत्य को समझने से व्यक्ति में समायोजन की क्षमता का विकास होता है, जो व्यक्ति को तनावमुक्त रखती है। फलतः व्यक्ति “परिवर्तित परिस्थितियों के अनुकूल स्वयं को ढालता है। 116 4. कर्त्तव्यनिष्ठ - तनावमुक्त व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन करता है और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति ही तनावमुक्त हो सकता है। वह अपने मित्रों, सहयोगियों, समाज और राष्ट्र के प्रति निष्ठा रखता है।" 117 उस पर जो भी उत्तरदायित्व सौंपा जाता है, उसका सम्यक् रूप से पालन करता है और सम्पूर्ण निष्ठा के साथ अपने कर्त्तव्य को सम्पन्न करता है। 5. आत्मसंयमी - जैनदर्शन के अनुसार शुभ लेश्या वाला व्यक्ति आत्मसंयमी हो जाता है। आत्मसंयमी का अर्थ है -स्वयं पर नियंत्रण का भाव। वह अपनी इन्द्रियों को, मन को और उन दोनों से उत्पन्न इच्छाओं और आकांक्षाओं पर नियंत्रण करने में सफल होता है। शुभ लेश्या से आत्मपरिणामों में विशुद्धि आती है, कषायों की मन्दता होती है और व्यक्ति धीरे-धीरे शुक्ललेश्या की ओर अग्रसर होता है, जो पूर्णतः तनावमुक्ति की अवस्था है। 6. शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ – व्यक्ति जब अशुभ लेश्याओं से ग्रसित होता है तब उसके व्यवहार में दुष्ट प्रवृत्तियों की अभिव्यक्ति होने लगती है, जिसके परिणामस्वरूप वह शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से अस्वस्थ हो जाता है। शुभ लेश्या इस अस्वस्थता को स्वस्थता में बदल देती है। व्यक्ति मानसिक तौर पर संतुष्ट. एवं संतुलित हो जाता है। मानसिक अस्वस्थता ही शारीरिक अस्वस्थता का मूल कारण है, जब मानसिक स्वस्थता होती है, तो शारीरिक स्वस्थता स्वतः ही आ जाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो शुभ लेश्या शारीरिक तनाव और मानसिक तनावों से मुक्त करती है।
11 लेश्या और मनोविज्ञान - कु. शांता जैन, पृ. 150 " लेश्या और मनोविज्ञान - कु. शांता जैन, पृ. 150
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