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________________ 332 उपर्युक्त स्थिति को समाप्त करने के लिए व्यक्ति को अशुभ से शुभ लेश्याओं की ओर प्रस्थान करना होगा। जब शुभ लेश्याएँ सक्रिय होती हैं, व्यक्ति का स्वभाव, उसका व्यवहार विनम्र हो जाता है। जैनदर्शन के अनुसार व्यक्ति के आत्म परिणामों में विशुद्धता आती है। सांसारिक तृष्णाओं से मुक्त होकर आत्मदर्शन की यात्रा पर चल पड़ता है और अंत में पूर्णतः तनावमुक्त मोक्ष अवस्था को प्राप्त करता है। मनोविज्ञान की भाषा में शुभ लेश्या वाला व्यक्ति तनावमुक्ति की दिशा में अग्रसर होता है। उसमें निम्न परिवर्तन घटित होते हैं - 1. आंतरिक द्वन्द्वों से मुक्त – अशुभ लेश्या में व्यक्ति बार-बार आंतरिक द्वन्द्व का अनुभव करता है। द्वन्द्व की स्थिति में व्यक्ति समय पर सही निर्णय नहीं ले पाता, जिसके परिणाम स्वरूप भी तनाव उत्पन्न हो जाते हैं। द्वन्द्व की तीव्रता व्यक्ति की शक्ति, समय और मानसिक संतुलन को नष्ट कर देती है। “द्वन्द्व निराकरण हेतु शुभ लेश्याओं का होना जरूरी है। जब तेजस लेश्या जागती है, तब निर्द्वन्द्वता, आत्म नियंत्रण की शक्ति और तेजस्विता प्रकट होती है। 115 द्वन्द्व समाप्त हो जाते हैं, उचित समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता बढ़ जाती है। 2. समस्याओं का समाधान – जीवन में समस्याएँ आती रहती हैं। ये समस्याएँ ही सम्यक् जीवन शैली की कसौटी है और इन कसौटियों में सफल होने के लिए शुभ लेश्या का होना आवश्यक है। शुभ लेश्या वाला व्यक्ति किसी भी समस्या का समाधान सोच-समझकर करता है। उसकी बुद्धिमत्ता से ही समस्याओं का सही समाधान होता है। 3. विषम परिस्थितियों में समायोजन – तनाव का एक कारण यह भी है कि व्यक्ति विषम परिस्थितियों में समायोजन नहीं रख पाता। उसमें जीवन की परिस्थितियों को यथार्थ रूप में ग्रहण करने की क्षमता नहीं होती है। शुभ लेश्या से व्यक्ति जीवन-यात्रा की परिस्थितियों को यथार्थ रूप में ग्रहण करता है। II लेश्या और मनोविज्ञान - कु. शांता जैन, पृ. 149 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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