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________________ ___15 बढ जाना इससे शरीर में थकावट महसूस होती है, क्योंकि उपर्युक्त छोटे-छोटे कार्यों में शारीरिक श्रम या दैहिक शक्ति अधिक व्यय हो जाती है। सामान्य संवेदनाजन्य तनाव - जिस व्यक्ति के ऊपर कई तरह की जिम्मेंदारियां होती है, बहुत अधिक कार्यभार होने से उसकी कार्यप्रणाली अव्यवस्थित हो जाती है, हमेशा जल्दी में कार्य सम्पन्न करने का प्रयत्न करता है, किन्तु कोई भी कार्य समय पर पूर्ण नहीं हो पाता है। ऐसे तनाव को सामान्य संवेदनाजन्य तनाव कहा जाता है, क्योकि प्रत्येक संस्था के मुख्य व्यक्ति पर जिम्मेंदारियां या कार्यभार अधिक होता है। ऐसे व्यक्ति को मुख्यतः अपने घर या कार्यलय का महत्वपूर्ण सदस्य होने के कारण मुखिया कहा जाता है। उनका पूरा जीवन इसी प्रकार के तनाव में समाप्त हो जाता है। इस प्रकार का तनाव लम्बे समय तक बना रहता है। इसका प्रभाव व्यक्ति के शरीर के साथ-साथ मस्तिक पर भी पड़ता है। अल्पकालीन संवेदनाजन्य तनाव में भी मस्तिष्क पर प्रभाव तो पड़ता है किन्तु तनाव के समाप्त होने पर अल्प समय में ही मस्तिष्क व शरीर दोनो स्वस्थ हो जाते हैं। सामान्य संवेदनाजन्य तनाव में शरीर एवं मस्तिष्क दोनो ही असंतुलित हो जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों को अति-रक्तचाप, सिरदर्द, सीने में दर्द, हृदय संबंधी बीमारियाँ आदि रोग होते रहते हैं, जिसमें से कुछ तो जीवन पर्यन्त रहते है। तीव्र संवेदनाजन्य तनाव - : तीनो प्रकार के तनावों में यह सबसे गंभीर है। यह तनाव भी लम्बे समय तक रहता है और व्यक्ति को दुःखी करता रहता है। किसी घटना के घटित होने पर जो तीव्र वेदना या संवेदन होते है, उनका व्यक्ति के मन या मस्तिष्क में असहनीय प्रभाव पड़ता है। जैसे गरीब हो जाना, जीवन में निरन्तर असफलता मिलना, घर-परिवार में सदैव कलह होना, आत्मविश्वास का समाप्त हो जाना आदि। जो व्यक्ति इन तनावों से ग्रस्त होते है, वे खुद यह अनुभव नहीं कर पाते Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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