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________________ तनाव है। दुःखादि तनावों से युक्त व्यक्ति की प्रतिक्रियाएं अलग-अलग होती है, इसलिए इन्हे तनावों के अलग-अलग रूप कह सकते है। वैसे तो विफलता, विरोध व दबाव की स्थिति में भी प्रतिक्रियाएं तो अलग-अलग ही होती है, इन्हें भी तनाव के ही विभिन्न रूप कह सकते हैं क्योंकि इनके कारण दुःख क्लेश आदि जो भाव उत्पन्न होते है वे तनाव ही हैं, जैसे सफलता नहीं मिलने पर दुःखी होगा, विरोधी से क्लेश होगा एवं किसी कार्य को करने के लिए बाध्य होने के पीछे कोई न कोई भय होगा। अतः हम यह कह सकते है कि भारतीय दार्शनिक डॉ. सुरेन्द्र वर्मा ने जो दुःख, क्लेश व भय को तनाव का समानार्थक कहा है, वह इस कारण कि ये तनाव के ही विविध रूप हैं। अतः दुःख, क्लेश भय आदि के भावों को भी सामान्य रूप से तनाव कह सकते है। एक वेब साइट पर तनाव के निम्न तीन प्रकार भी मिले हैं - 1. अल्पकालीन संवेदनाजन्य तनाव, 2. सामान्य संवेदनाजन्य तनाव और 3. तीव्र संवेदनाजन्य तनाव अल्पकालीन संवेदनाजन्य तनाव : दैहिक गतिविधियों का असामान्य हो जाना, किसी कार्य को मर्यादित समय में पूर्ण करने की जवाबदारी आ जाना, आवश्यक वस्तु जैसे चाबी आदि का कहीं रख कर भूल जाना, उसे खोजने में अधिक श्रम का होना आदि कारणों से जो तनाव उत्पन्न होते हैं उन्हे अल्पकालीन संवेदनाजन्य तनाव कहा गया है। तनाव की इस स्थिति में व्यक्ति बहुत ही कम समय के लिए चिंतित या परेशान रहता है। समय निकल जाने पर या कार्य हो जाने पर वह अपनी सामान्य अवस्था में आ जाता है। इस तरह के तनावों का प्रभाव व्यक्ति के स्वास्थ पर भी पड़ता है जैसे सिरदर्द, पीठ दर्द, पेट दर्द, बदन दर्द, आदि होना, धड़कन का 35 Stress defination, Type and Causes - Lttp: || www. FatFree Kitchen. com/stress Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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