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________________ 278 शमन करना ही होगा। उत्तराध्ययनसूत्र में भी कहा गया है कि -"काम-भोग क्षणभर को सुख और चिरकाल तक दुःख देने वाले हैं। दुःख तनावपूर्ण स्थिति को जन्म देता है, अत: वासनाओं का शमन करके ही तनावों से मुक्ति पाई जा सकती है। इस प्रकार शमन भी तनावमुक्ति का अनुपम साधन है, फिर भी यह समझना आवश्यक है कि यह शमन, दमन से भिन्न है। संस्कृत के तीसरे रूप 'श्रम' के आधार पर इसका अर्थ होगा -सम्यक् प्रयास या पुरुषार्थ। अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों में समत्व बनाए रखना सम्यक् प्रयास है। इसी प्रकार तपादि के माध्यम से इन्द्रियों को नियंत्रित करने का अभ्यास भी सम्यक् पुरुषार्थ है। जब समत्व होगा तो चित्त-वृत्तियाँ विचलित नहीं होंगी और चित्त-वृत्तियों का यह संतुलन तनाव की अनुभूति को कम करता है। भोग इन्द्रियों के द्वारा ही होता है, इन्द्रियां मांग करती रहती है और हम उन्हें पूर्ण करने के लिए आतुर रहते हैं। अतः इन्द्रियों को नियंत्रण में रखने का प्रयत्न ही सम्यक् पुरुषार्थ है। पुरुषार्थ से इन्द्रियों की चंचलता पूरी तरह समाप्त हो जाती है तथा व्यक्ति स्वयं को तनावमुक्त अनुभव करता है। संवेग - संवेग शब्द का शाब्दिक विश्लेषण करने पर उसका निम्न अर्थ प्राप्त होता है - सम्+वेग। सम = सम्यक्, उचित। वेग = गति अर्थात् सम्यक् गति। सम्यक् गति मोक्ष गति तक पहुंचाती है, मोक्ष तनावमुक्ति की ही अवस्था है। दूसरे अर्थ में क्रोध, मान, माया, लोभ की प्रवृत्तियों को सम करना संवेग है। जहाँ राग होता है, वहाँ ये चार कषाय भी आ जाते हैं। संवेग से इन कषायों पर विजय पा सकते हैं। क्रोधादि आवेग को समभाव से सहन कर कोई प्रतिक्रिया नहीं करना, संवेग है और समभाव की क्रिया तनावमुक्ति की अवस्था पाने की क्रिया है। निर्वेद – निर्वेद शब्द का अर्थ है – उदासीनता, वैराग्य या अनासक्ति । तनावमुक्ति के लिए सांसारिक प्रवृत्तियों के प्रति उदासीनता का भाव रखना " खणमित्त सुक्खा बहुकाल दुक्खा – उत्तराध्ययन -14/13 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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