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________________ 270 मुनाफा बढ़ेगा। मुनाफा बढ़ने से क्रयशक्ति बढ़ेगी। क्रयशक्ति बढ़ने से पुनः माल की खपत बढ़ेगी। इस प्रकार देश और व्यक्ति दोनों के आर्थिक विकास में सहायता मिलेगी। संक्षेप में कहें तो आज की अर्थशक्ति इन तीन सिद्धांतों पर खड़ी हुई है - इच्छाएँ बढ़ाओं, माल खपाओ और मुनाफा कमाओ। इस सबके आधार पर उपभोक्तावादी संस्कृति का विकास हो रहा है और यह उपभोग की प्रवृत्ति इच्छाओं को जन्म देती है और जिससे तनाव बढ़ता है। उत्तराध्ययनसूत्र के चतुर्थ असंस्कृत अध्ययन में स्पष्टतः कहा गया है कि –'वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते' अर्थात् धन व्यक्ति की सुरक्षा करने में समर्थ नहीं है। 74 यही कारण है कि आज आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न देश भी तनाव से मुक्त नहीं है। इच्छाओं की वृद्धि से उपभोग की आकांक्षा उत्पन्न होती है। उपभोग के लिए अर्थ की आवश्यकता होती है, अतः व्यक्ति येन-केन- प्रकारेण अर्थ अर्जन करना चाहता है। इससे शोषण और दोहन की प्रवृत्ति बढ़ती है। दोहन की प्रवृत्ति से पर्यावरण असंतुलित होता है और शोषण वृत्ति से समाज में वर्गभेद व वर्ग संघर्ष जन्म लेते हैं, फलतः तनाव बढ़ते ही जाते हैं। इस प्रकार यदि तनावों से मुक्त होना है तो इस अर्थ चक्र को ही परिवर्तित करना होगा, क्योंकि चल-अचल सम्पत्ति, धन, धान्य और गृहोपकरण भी दुःख से, तनाव से मुक्त करने में समर्थ नहीं होते हैं।115 इच्छाओं का निर्मूलन एकमात्र ऐसा उपाय है जो व्यक्ति को तनावों से मुक्त कर सकता है। उपभोक्तावाद का आधार अनियन्त्रित इच्छाएँ हैं और जैनधर्म इच्छाओं को सीमित या उनके निर्मूलन करने की बात करता है। दशवैकालिक में कहा भी है76 –“कामे कमाही कमियं खु दुक्खं', कामनाओं. इच्छाओं को दूर करना ही दुःखों को दूर करना है, अर्थात् इच्छाओं का निर्मूलन होना ही तनावों से मुक्ति या तनाव प्रबंधन है। 174 उत्तराध्ययनसूत्र - 4/5 15 उत्तराध्ययनसूत्र – 6/5 176 दशवैकालिकसूत्र - 2/5 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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