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________________ 267 स्थानांगसूत्र में शुक्लध्यान के चार लक्षण बताए गए हैं, वे निम्न हैं - 1. अव्यथ-व्यथा से रहित अर्थात् परीषह या उपसर्गादि से पीड़ित नहीं होने वाला। 2. असम्मोह –देवादिकृत माया से मोहित नहीं होने वाला। 3. विवेक – सभी संयोगों को आत्मा से भिन्न मानने वाला। 4. व्युत्सर्ग - शरीर और उपधि से ममत्व का त्यागकर पूर्ण निःसंग हो जाना। तनावमुक्त व्यक्ति में भी ये ही लक्षण पाए जाते हैं, वह किसी भी व्याधि, रोग, परीषह या उपसर्गादि से दुःखी नहीं होता है, न ही किसी संयोग से प्रसन्न होता है। वह मात्र शांति व आनंद का अनुभव करता है, क्योंकि उसके अन्तरमन में क्षमा, निर्लोभता, नैतिकता, सरलता, मृदुता, सहिष्णुता आदि का वास होता है। स्थानांगसूत्र में शुक्लध्यान के चार आलम्बन भी बताए हैं, जो तनावमुक्त व्यक्ति में गुणरूप में विद्यमान रहते हैं।183 1. क्षान्ति (क्षमा) 2. मुक्ति (निर्लोभता) 3. आर्जव (सरलता) 4. मार्दव (मृदुता) ध्यानशतक में ध्यान के लक्षण - ध्यानशतक भी पूर्णतः ध्यान पर ही आधारित ग्रन्थ है। ध्यान के बिना समत्व और समत्व बिना मुक्ति सम्भव नहीं है, अतः तनाव प्रबन्धन के लिए ध्यान आवश्यक है। ध्यानशतक में भी ध्यानों के स्वरूप, लक्षण, आलम्बन आदि की विस्तृत चर्चा हुई है। ध्यानशतक ध्यान के चार भेदों का निरूपण करने से पूर्व ध्यान के लक्षण का विवेचन करता है कि -"स्थिर अध्यवसाय ध्यान है। स्थिर 163 स्थानांगसूत्र - 4/1/71 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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