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________________ 266 माना गया है। शुक्लध्यान के अंतिम चतुर्थ चरण को प्राप्त व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त कर लेता है, जो कि आत्मा का अंतिम लक्ष्य है। ____ तनावमुक्ति का लक्ष्य रखते हुए व्यक्ति शुक्लध्यान की प्रथम अवस्था से क्रमशः आगे बढ़ते हुए अन्त में सिद्धावस्था अर्थात् पूर्णतः तनावमुक्ति की अवस्था को प्राप्त कर लेता है। स्थानांगसूत्र में शुक्लध्यान की चार अवस्थाएँ बताई गई हैं। ये चार अवस्थाएँ ही शुक्लध्यान के चार प्रकार भी कहे गए हैं162 - पृथकत्ववितर्क सविचार - इस ध्यान में ध्याता के चित्त में विचार तो रहते हैं, परन्तु चित्त में चंचलता नहीं रहती है। व्यक्ति किसी वस्तु पर चित्त को केन्द्रित करता है, उसका विश्लेषण करता है, जैसे किसी एक ही वस्तु के किसी एक गुण विशेष का चिन्तन करता है, तो कभी उसकी विविध अवस्थाओं या पर्यायों का चिन्तन करता है। एकत्ववितर्क अविचार - मनोवृत्ति में इतनी स्थिरता हो जाती है कि जीव एक ही विश्लेषित गुण या पर्याय पर अपने चिन्तन को केन्द्रित कर लेता है। 3. सूक्ष्मक्रिया अनिवृत्ति - इसमें मन, वचन और काया की स्थूल क्रियाएँ तो रूक जाती है, किन्तु उनकी सूक्ष्म क्रियाएँ चलती रहती है। उदाहरण - हाथ, पाँव का हिलना डुलना तो बंद हो जाता है, परन्तु स्वप्न आदि की क्रियाएँ तो चलती रहती हैं। समुछिन्नक्रिया अप्रतिपाती - इस ध्यान में मन, वचन और काया की सूक्ष्म प्रवृत्तियाँ भी समाप्त हो जाती है। इस ध्यान का ध्याता चौदहवें गुणस्थान को प्राप्त कर पाँच हृस्व स्वरों या व्यंजनों के उच्चारण में जितना समय लगाता है, उतने समय में मुक्त हो जाता है। उपर्युक्त ध्यान के प्रकारों का तनाव-प्रबन्धन के साथ क्या सम्बन्ध है ? यह इसी अध्याय के पूर्व में दिया गया है। 162 स्थानांगसूत्र - 4/1/69 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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