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है ।
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आकुलता तनाव का लक्षण है। ध्यानशतक में चारों रौद्रध्यान को संसार की वृद्धि करनेवाला ओर नरकगति का मूल कहा गया है। जैनधर्म के अनुसार संसार - वृद्धि और नरकगति दोनों ही दुःख के हेतु हैं या तनावयुक्त अवस्था हैं ।
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आर्तध्यांनी हताश और परेशान होता है, रौद्रध्यानी अपनी निराशा को, चिंता को दूर करने के हेतु रौद्रध्यान करता है लेकिन परिणाम यह होता है कि वह और अधिक तनावग्रस्त हो जाता है । रौद्रध्यान के जो लक्षण हैं, वही एक तनावग्रस्त व्यक्ति में भी पाए जाते हैं । ध्यानशतक में रौद्रध्यान के निम्न लक्षण हैं 132 –
अर्थात् जो इस हिंसा, मृषावाद आदि में वाणी और शरीर से संलग्न है, उस रौद्रध्यानी के उत्सन्न, बहुल, नानाविध, आमरण दोष ये चार लक्षण हैं।
लिंगाई तस्स उस्सण्ण - बहुल - नाणाविहाऽऽमरणदोसा तेसिं चिय हिंसाइसु बाहिकरणोवउत्तस्स | |26||
1. उत्सन्न - दोष रौद्रध्यानी विषय-भोग, वासना, कामना, राग- - द्वेष आदि
दोषों से तनावग्रस्त रहता है। उसे दूसरों को देखकर भी प्रसन्नता नहीं होती, अपितु ईर्ष्या से दुःखी होता रहता है। दूसरों के सुख को भंग करने का प्रयत्न करता है ।
131 ध्यानशतक
132 ध्यानशतक
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2. बहुल-दोष दूसरों की प्रसन्नता को निराशा में बदलने के लिए या अपने सुख के लिए उसमें हिंसा, झूठ, चोरी आदि दोषों की बहुलता आ जाती है।
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सद्दाविसयसाहणधणसारक्खणपरायणमणिद्वं । सव्वाभिसंकणपरोवघात्कलुसाउलं चित्तं । । 22 ।। ध्यानशतक-22
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