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________________ . . 234 व्यक्ति ही अपने सम्यक-ज्ञान के आधार पर सम्यक् आध्यात्मिक-लक्ष्य का निर्धारण कर तनावों से मुक्त रह सकता है, क्योंकि व्यक्ति की सबसे बडी भ्रान्ति इसी में होती है कि वह सम्यक् लक्ष्य का निर्धारण नहीं कर पाता हैं। अतः जैनदर्शन की प्राथमिक मान्यता यह है कि जीवन के लक्ष्य निर्धारण के पूर्व सम्यक्-दृष्टिकोण और सम्यक ज्ञान का विकास आवश्यक हैं। तनावों के उत्पन्न होने का मुख्य कारण जीवन लक्ष्य के गलत निर्धारण होता है। हम इच्छाओं या वासनाओं से प्रभावित होकर गलत लक्ष्य का निर्धारण कर लेते है। ____ जहाँ तक तनाव निराकरण की अप्रत्यक्ष मनोवैज्ञानिक विधियों का प्रश्न है। वे भी मूलतः सम्यक्-दृष्टिकोण और सम्यक्-ज्ञान पर ही आधारित है। इनमें जैनदर्शन लक्ष्य-शोधन को ही मुख्यता देता है, उसके साथ ही वह जीवन में यदि भौतिक लक्ष्य का निर्धारण किया हो और उसमें असफलता के कारण तनाव उत्पन्न हो रहा हो तो वह उस लक्ष्य के पृथक्करण या उस लक्ष्य के परित्याग को उचित मानता है। साथ ही वह यह भी मानता है कि वह जीवन की असफलताओं को पूर्व नियत या पूर्व कर्मों का उदय मानकर आत्मसंतोष को प्राप्त करता है, क्योंकि जैन धर्म सिद्धांत यह मानता है बाह्य सफलताएं और असफलताएँ पूर्णतः व्यक्ति के वर्तमान प्रयत्नों पर निर्भर नहीं है, उसमें उसके पूर्वबद्ध कर्म के विपाक भी महत्वपूर्ण कार्य करते है। जैनदर्शन विस्थापन, प्रत्यावर्तन, दमन आदि अपरोक्ष मनोवैज्ञानिक विधियों को समुचित नहीं मानता है। वह दमन के स्थान पर निराकरण को ही अधिक उचित मानता है, क्योंकि उसके अनुसार तनावों से मुक्ति का सम्यक्-उपाय वासनाओं का निराकरण ही आत्म-परिशोधन- विभावदशा का परित्याग जैनदर्शन भारतीय-श्रमण परम्परा का एक अंग है और भारतीय श्रमण धारा मूलतः आध्यात्मिक जीवनदृष्टि की प्रतिपादक है। जब हम अध्यात्म या आध्यात्मिक जीवनदृष्टि की बात करते है, तो उसका अर्थ होता है, भौतिक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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