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असंतुलित भोजन शारीरिक तनाव पैदा कर देता है और शारीरिक तनाव मानव की मानसिकता को प्रभावित करता है। जो भी तत्त्व हमारे शरीर पर प्रभाव डालते हैं, वे शरीर के साथ-साथ व्यक्ति के व्यक्तित्व एवं भावों पर भी असर करते है।" योग में तीन प्रकार के भोजन का वर्णन मिलता है- सात्विक भोजन, राजसिक भोजन तथा तामसिक भोजन। 74
सात्विक भोजन करने से शरीर में प्राण का प्रवाह उचित रूप से होता है और मन भी शांत, सकारात्मक और नियंत्रण में रहता है। जब शरीर हमें प्राण प्रवाह का संतुलन होता है तो उत्तेजनाएं शांत होती जाती है। सात्विक भोजन करने से शरीर पुष्ट और निरोग रहता है। ऐसे भोजन के उदाहरण है -पके हुए फल, दूध, सूखे मेवे आदि।
सुरेश जी "सरल" की कृति 'शाकाहार ही क्यों?' में भी सात्विक एवं संतुलित भोजन को ही तनाव मुक्ति का हेतु उल्लेखित किया है। उन्होंने कहा है -"जब मन में हीन भाव आने लगे, या मानसिक असंतुलन और चिड़चिड़ाहट आने लगें तब पुरूष हो या नारी -उसे सोचना चाहिये कि उसके आहार से उसे अपेक्षित विटामिन नहीं मिल पा रहे है। ऐसी स्थिति में शुद्ध शाकाहारी, संतुलित एवं सात्विक भोजन करें। 75 जैन धर्म के अनुसार संतुलित भोजन करना ही हमारे स्वास्थ्य एवं मानस के लिए, यहां तक की हमारी चेतना के विकास के लिए उचित है। असंतुलित भोजन शरीर और मन दोनों में विकृति पैदा करता है
और व्यक्ति को तनावयुक्त बनाता है। इसलिए भोजन के साथ-साथ भोजन के प्रकार, परिमाण एवं समय का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए ताकि व्यक्ति तनाव युक्त रह सकें।
74 मन को नियंत्रित कर तनावमुक्त कैसे रहें - एम.के. गुप्ता, पृ. 20 75 शाकाहारी ही क्यों ? - सुरेश 'सरल', पृ. 21
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