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________________ 204 इन केन्द्रों पर ध्यान करने से ये केन्द्र जागृत हो जाते है। हर केन्द्र का अपना एक अलग लाभ है। जैसे शांति केन्द्र की प्रेक्षा भावधारा को परिवर्तित करती है उसे शुद्ध बनाती है। ज्योति केन्द्र और दर्शन केन्द्र की प्रेक्षा से क्रोध,वासना, लोभ आदि उपशांत हो जाते है। संक्षेप में कहें तो किसी भी केन्द्र को जाग्रत करो, उसकी मंजिल तनावमुक्ति ही है। अनुप्रेक्षा एक शब्द है प्रेक्षा उसका आशय है देखना। दूसरा शब्द है अनुप्रेक्षाः अनु उपसर्ग लगते ही प्रेक्षा शब्द का आशय बदल जाता है। अनुप्रेक्षा शब्द का आशय है, चिन्तन-मनन पूर्वक देखना। अधिकांश व्यक्ति जीवन की सत्यता को स्वीकार नहीं कर पाते, क्योंकि उसमें उन्हें कहीं ना कहीं कोई दुःख होता है। दुःख के कारण ही व्यक्ति तनावग्रस्त हो जाता है और स्वयं का विकास नहीं कर पाता है। अनुप्रेक्षा सच्चाई को देखना है, हकीकत का सामना करने की शक्ति है। पूर्वधारणाओं को निकालकर, जो सत्य है, यथार्थ है, उसका चिन्तन करना अनुप्रेक्षा है। जैनयोग सिद्धांत और साधना में लिखा है- "सत्य प्रति प्रेक्षा अनुप्रेक्षा" अर्थात् सत्य के प्रति एकानिष्ठ बुद्धि से देखना अनुप्रेक्षा है। प्रेक्षा में हम शरीर के शक्ति केन्द्रों को देखते है, शरीर में हो रहे प्रकम्पनों का अनुभव करते है और अनुप्रेक्षा में या ध्यान में जो कुछ देखा गया है उस पर विचार करते है। मिथ्या धारणाएँ, मिथ्या कल्पनाएँ ही हमें तनाव के घेरे में ले जाती है, हमारी सोच को नकारात्मक बना देती हैं और सत्य इसी दबाव में आकर दब जाता है। तब हम जीवन को इतना तनावग्रस्त बना देते हैं कि तनावमुक्ति के लिए कोई रास्ता नहीं बचता। अनुप्रेक्षा हमारी मिथ्या वृत्तियों को 54. जैन योग सिद्धांत और साधना, पृ. 212 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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