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सही व दूसरे को गलत साबित करने में लगे हुए है। तनाव की इस स्थिति को समाप्त करने के लिए जैनदर्शन ने अनेकान्तवाद का सिद्धांत दिया है।
सूत्रकृतांग में वर्णित है कि जो व्यक्ति सिर्फ अपने बारे में सोचता है, स्वयं को ही सत्य और दूसरों को असत्य बताकर उनकी निन्दा करता है, वह जन्म-मरण के चक्र से कभी मुक्त नहीं हो पाता । 14
प्रो. टी. जी. कलर कहते है आज के युग में जहाँ लोग अपने-अपने मत से स्वयं को महान मानते हुए दूसरो की निन्दा कर अशांति या तनावयुक्त माहौल उत्पन्न करते हैं वहाँ अनेकांत दृष्टिकोण तनावमुक्ति के लिए रामबाण सा काम करता है। 15
वर्तमान में विश्व कई समस्याओं का सामना कर रहा है, उन्हीं समस्याओं में अगली समस्या है, पर्यावरण असंतुलन की । पर्यावरण असंतुलन सिर्फ मानव जीवन और उसके आसपास के वातावरण को ही नहीं, अपितु जानवरों एवं पेड़-पौधों की जिन्दगी पर भी असर डालता है। आज के वैज्ञानिक युग में नई तकनीकों के आविष्कार से जितना भौतिक सुख मिलता, उससे कहीं ज्यादा शारीरिक व मानसिक तनाव मिलता है। वैज्ञानिक यन्त्रों से जो दूषित गैस निकलती है, वह प्राकृतिक वातावरण को दूषित कर देती है जिसका प्रभाव पानी, पेड़-पौधों, हवा आदि पर पड़ता है। जैनधर्म में इन्हे एकेन्द्रिय जीव माना है । " आचारांग के पहले अध्ययन में इन व्यवहारों का विस्तार से विवेचन मिलता है । ये हवा, पानी मानव के जीवन जीने का आधार है और इनके दूषित होने पर मानव मन व शरीर भी तनावयुक्त हो जाता है ।
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आज विश्व को एक नहीं कई समस्याओं ने घेर रखा है। जहाँ एक ओर पूरे विश्व में इन समस्याओं के कारण तनाव बना हुआ है, वहीं दूसरी ओर व्यक्तिगत समस्याएं भी व्यक्ति को तनावग्रस्त कर रही है। बेरोजगारी की
सूत्रकृतांग
1/1/2/23
15 Vaishali Institute research bulletin, No. 4, P.31
" आचारांग (सम्पूर्ण पहला अध्ययन ), 1/1
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