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________________ 167 करता है उसका दुःख वैसे ही अनुगमन करता है जैसे रथ का पहिया घोडे के पैर का अनुगमन करता है" और जो स्वच्छ मन से भाषण एवं आचरण करता है उसका सुख वैसे ही अनुगमन करता है जैसे साथ नही छोड़ने वाली छाया।' तीसरे अध्याय में हम इसका विस्तृत विवेचन कर चुके है। उपर्युक्त विवेचना से यही सिद्ध होता है कि सभी आचार दर्शनों ने एवं मनोवैज्ञानिक विचारकों ने मन को ही तनावों की उत्पत्ति का और तनावों से मुक्ति का प्रबलतम कारण माना है। कहते है कि नदी का प्रवाह रोकना सम्भव है किन्तु मन पर नियंत्रण रखना कठिन है, लेकिन सतत् अभ्यास और उचित साधना द्वारा इसमें सफलता प्राप्त की जा सकती है। कुछ लोग नये साधकों को मन को वश में करने के लिए ध्यान कि विविध प्रक्रियाओं को अपनाने की सलाह देते है। लेकिन जिन लोगों का मन बहुत अधिक चंचल और व्याकुल होता है उन्हें ध्यान कि ये प्रक्रियाएँ कठिन लगती है। उन्हें तो तनाव प्रबंधन कि सरल विधियाँ अपनाने की सलाह दी जाना चाहिए। जिससे साधक सहज तनावमुक्त हो सके। मैं यहाँ तनाव प्रबंधन की भी कुछ सरल विधियाँ दे रही हूँ, जिन्हें अपनाने से सम्यक रूप से तनाव प्रबंधन सम्भव हो सकता है। ये विधियाँ निम्न है: तनाव प्रबंधन की सरल विधियाँ : 1. शारीरिक विधियाँ - अ. शरीर शुद्धि की क्रियाएँ. ब. योगासन और व्यायाम. स. प्राणायाम (श्वास-प्रश्वास का संतुलन) द. शरीर प्रेक्षा, ध्यान और आनापानसति (श्वासोच्छवास की स्मृति) ई. कायोत्सर्ग 2. भोजन संबंधी विधियाँ - 2. धम्मपद-1 3. धम्मपद-2 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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