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अध्याय-5 तनाव प्रबंधन की विधियाँ
"मन संसार की सबसे शक्तिशाली वस्तु है। जिसने अपने मन को वश में कर लिया है, वह संसार की किसी भी चीज को नियंत्रित कर सकता है।"
-- स्वामी शिवानंद
मन हमारी वह शक्ति है, जिसके द्वारा हम अपने प्रति जागरूक हो सकते है, अपने वैभाविक स्वरूप एवं स्वभाविक स्वरूप का बोध कर सकते है। जब मन प्रशांत होता है, अन्तर्मुखी होता है, तो हम शांति या आनंद का अनुभव करते है। किन्तु यदि मन बहिर्मुख, अनियंत्रित एवं असंतुलित होता है तो हम तनावग्रस्त हो जाते हैं। सदैव द्वन्द्व में अर्थात् दो पक्षों के बीच अनिश्चय उलझे रहते हैं। यह द्वन्द्व की अवस्था मनुष्य को तनावग्रस्त बनाती है। जैसे – राग-द्वेष, पंसद-- नापसंद, प्रेम-घृणा, क्रोध-शांति, सुख-दुःख, ईर्ष्या--सौमनस्य, आदि।
किसी ने कहा है “मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।" भारतीय चिंतकों ने कहा है -हमारे बंधन का कारण भी हमारा मन है और हमारी मुक्ति हेतु भी मन है। जीवन का सारा खेल मन की इच्छा शक्ति पर निर्भर है। मन ही प्रेरक है, मन ही प्रेरणा है। मन सर्जक भी है और विध्वंसक भी है। जैसा कि पहले बताया है, कि तनाव का जन्म मन में ही होता है, तो अगर मन को ही साध लिया जाए तो तनाव का जन्म ही नहीं होगा और यदि तनाव का जन्म नहीं होगा तो उनसे मुक्ति का प्रश्न ही नहीं उठेगा। अतः भारतीय धर्मों की दृष्टि में मन की साधना ही तनाव प्रबंधन का मुख्य आधार है।
'उत्तराध्ययनसूत्र में महावीर कहते है कि मन के संयमन से एकाग्रता आती है जिससे ज्ञान प्रकट होता है।" अज्ञान की समाप्ति और सत्य दृष्टिकोण की उपलब्धि होती है। तनावमुक्ति के लिए अनिवार्य शर्त है-मनःशुद्धि । बौद्धदर्शन में भी कहा गया है कि -"जो सदोष मन से आचरण करता है, भाषण
1. उत्तराध्ययन, 29/57
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