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विश्व को तनावग्रस्त बना रही है। जैन धर्म के अनुसार तनाव-मुक्ति के लिए उत्तराध्ययन सूत्र में लिखा है - "यदि अभय चाहते हो तो अभय प्रदान करो।'
विश्व की अगली समस्या है युद्ध और हिंसा।' आज प्रत्येक व्यक्ति के मन में असंतोष की भावना है। हर कोई दूसरों पर अपना अधिकार जमाना चाहता है। इतना संग्रह करना चाहता है कि स्वयं को राज्याधिकार मिल सके। इसी आकांक्षा के कारण युद्ध का जन्म होता है, जिसके परिणाम स्वरूप पूरे विश्व में तनाव व हिंसा फैल जाती है। सूत्रकृतांगसूत्र में लिखा है –हिंसा या युद्ध का मुख्य कारण संग्रह की वृत्ति है। जैनधर्म के अनुसार वर्तमान परिवेश में युद्ध व हिंसा भी तनाव का हेतु है। इस युद्ध व हिंसा का हेतु व्यक्ति की संग्रह करने व अधिकार पाने की इच्छा या वृति है।
वर्तमान में समाज में अलगाव की वृत्ति भी विश्व में तनाव उत्पन्न कर रही है। मानव जाति एक है, किन्तु उसे राज्य, रंग, जाति, सम्प्रदाय आदि के आधार पर भागों में बाँट दिया गया है। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम एक हैं, किन्तु हमी ने मानव जाति को भिन्न-भिन्न जातियों, सम्प्रदायों आदि में विभक्त कर दिया है, जिसके परिणाम स्वरूप लोगों में आपसी समझ, प्रेम, सद्भावना आदि के स्थान पर नफरत और वैरभाव ने जगह बना ली है। मानव, मानव का ही रक्त बहा रहा हैं। जैनधर्म की भी यही मान्यता है कि सभी मानव एक हैं और जाति, सम्प्रदाय आदि के आधार पर उन्हें विभाजित करना उचित नहीं है। भगवान् महावीर स्वामी ने यह घोषित किया था कि सम्पूर्ण मानवजाति एक है।
कोई भी व्यक्ति छोटा या बड़ा नहीं होता है। सबकी अपनी-अपनी योग्यताएं हैं और उसी योग्यता के आधार पर, आत्मशुद्धि के द्वारा महान बना जा
6 उत्तराध्ययन सूत्र - 6/6
Peace, religious harmony and solution of world problem from Jain persepective, Sagarmaligi Jain, page 26 8 सूत्रकृतांग - 1/1/1/1. ' Peace Religious harmony and solution of world problem from Jain Prepective. Sagarmal Jain, page-26 10 "एका मनुसा जाई"- आचारांग नियुक्ति – श्री विजयजिनेश्वर- गाथा 19
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