________________
146
दूसरे माया या कपटवृत्ति को एक अन्य अपेक्षा से चौर्य कर्म भी कहा गया है और चौर्य कर्म करने वाला व्यक्ति सदा भयभीत रहता है और सदा तनावग्रस्त रहता है, इसमें कोई वैमत्य नहीं है। अतः माया रूपी कषाय भी तनाव का हेतु है। माया के चार प्रकार -
अनंतानुबन्धी माया – यह तीव्रतम कपटाचार की स्थिति है। जितनी गहरी कपटवृत्ति होगी उतना ही अधिक विश्वासघात होगा और उतना ही अधिक तनाव होगा। यह माया बांस की जड़ के समान होती है, जो कभी भी सीधी नहीं होती है। इस माया की स्थिति तीव्रतम होने कारण तद्जन्य तनाव भी तीव्रतम स्थिति का होता है।
अप्रत्याख्यानी माया - ऐसी माया भैंस के सींग के समान कुटिल होती है। ऐसी माया में तनाव का स्तर अनन्तानुबन्धी की अपेक्षा कुछ कम होता है, क्योंकि ऐसी माया तीव्रतर होती है अतः तनाव भी तीव्रतर ही होगा।
प्रत्याख्यानी माया - गोमूत्र की धारा के समान कुटिल माया प्रत्याख्यानी माया है। इस स्तर की माया में तनाव भी अपेक्षाकृत कम तीव्र ही होता है।
संज्वलन माया – अल्प कपटाचार होने के कारण इससे तनाव तो होता है, किन्तु उसका स्तर भी मंद ही होता है। जिस प्रकार बांस का छिलका आसानी से मुड़ जाता है, उसी प्रकार ऐसी माया मे विवाद आसानी से सुलझ जाते है।
अतः तनावमुक्ति के लिए व्यक्ति को माया कषाय से उपर उठना होता है। वस्तुतः जहाँ मान और लोभ कषाय प्रमुख बनते हैं, वहां स्वतः कपट या माया वृत्ति आ जाती है। इसलिए जैनधर्म में कहा गया है कि माया पर विजय सरलता या आर्जव गुण से ही सम्भव है। यदि मानव को तनावमुक्त होना है तो
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org