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________________ _133 अहंकार को कोई ठेस पहुंचती है। ऐसी स्थिति में भी उसका मानसिक संतुलन भंग हो जाता है, जिसकी अभिव्यक्ति क्रोध से होती है। हम यह भी कह सकते हैं कि क्रोध तनाव की एक स्थिति है। क्रोध की उपस्थिति ही स्वयं अपने आप में एक तनाव है। 'जैन-विचारणा में सामान्यतया क्रोध के दो रूप माने हैं - 1. द्रव्यक्रोध एवं 2 भाव क्रोध । शारीरिक स्तर पर जो क्रोध होता है, वह द्रव्य क्रोध है एवं विचारों या मनोभावों के स्तर पर जो क्रोध होता है वह भाव क्रोध है। द्रव्य क्रोध शारीरिक तनाव उत्पन्न करता है, तो भाव क्रोध मानसिक तनाव को पैदा करता है। इनमें प्रथम-द्रव्य क्रोध शारीरिक-तनावों का हेतु है तो दूसरा भाव क्रोध मानसिक तनाव का परिचायक है। वस्तुतः शारीरिक तनाव का प्रभाव भी मन पर पड़ता है, किन्तु इसकी संभावना भाव क्रोध की अपेक्षा से कम ही होती है। मानसिक क्रोध या तनाव शरीर और मन दोनों को तनावग्रस्त कर देता है। योगशास्त्र में आचार्य हेमचन्द्र ने क्रोध का स्वरूप वर्णित करते हुए कहा है -"क्रोध शरीर और मन को संताप देता है, क्रोध वैर का कारण है, क्रोध दुर्गति की पगडण्डी है और मोक्षमार्ग में अर्गला के समान है। 2 तनावमुक्ति में क्रोधरूपी तनाव बाधक है। क्रोध में अन्धा हुआ व्यक्ति सत्य, शील और विनय का नाश कर डालता है। 63 क्रोध और तनाव की एकरूपता हम इस प्रकार भी समझ सकते हैं -क्रोध और तनाव दोनों ही 'पर' के निमित्त से होते हैं, इसमें 'पर' को नष्ट करने के भाव उत्पन्न होते हैं, किन्तु हम दूसरे को तनावग्रस्त बना पाए या नहीं, पर स्वयं की शांति तो भंग हो ही जाती है। इसी आशय वाला कथन ज्ञानार्णव में भी मिलता है। ज्ञानार्णव में क्रोध से हानि बताते हुए शुभचन्द्र लिखते हैं कि -"क्रोध में सर्वप्रथम स्वयं का चित्त अशान्त होता है, भावों में कलुषता छा जाती है, विवेक का दीपक बुझ जाता है। क्रोधी व्यक्ति दूसरे को अशान्त कर ॥ भगवतीसूत्र - 12/5/2 62 योगशास्त्र, प्रकाश-4, गा.-9 63 प्रश्नव्याकरणसूत्र – 2/2 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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