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उसकी बाह्य प्रतिक्रियाएं तो रूकती हैं, किन्तु चैत्तसिक प्रतिक्रियाएं चलती रहती . हैं। इस स्तर पर व्यक्ति का मानसिक तनाव बढ़ता तो नहीं है, परन्तु समाप्त भी नहीं हो पाता है। व्यक्ति समझता तो है कि वह तनावग्रस्त है और उसका कारण क्या है, किन्तु उससे मुक्त भी नहीं हो पाता। वह प्रयत्न करता है कि उसका मानसिक संतुलन बना रहे, किन्तु निमित्त मिलने पर वह फिर तनाव में आ जाता है। उसके मन में संकल्प-विकल्प चलते रहते हैं। बाह्य प्रतिक्रियाएँ तो रूक जाती है, किन्तु चैत्तसिक स्तर पर वासना और विवेक का आन्तरिक युद्ध तो चलता रहता है और चित्त अशांत बना रहता है।
__अप्रत्याख्यानी कषाय में भी क्रोध, मान, माया व लोभ की प्रवृत्ति तो होती है, किन्तु इनकी तीव्रता की स्थिति अनन्तानुबंधी कषाय की अपेक्षा से कम ही होती है।
. अप्रत्याख्यानी कषाय में दूसरे के अहित की भावना तो कम होती है, किन्तु अपनों के प्रति राग भाव तीव्र होता है। व्यक्ति का अपने प्रिय-परिजनों के प्रति मोह इतना अधिक प्रगाढ़ होता है कि वह अतिरागभाव के कारण उनके लिए सदैव चिंतित रहता है। उनके सुख के लिए या उनका वियोग न हो इस भय से कई पापकर्म भी करता है, जो उसे तनावग्रस्त बना देते हैं।
प्रत्याख्यानावरण कषाय -
तनाव का वह स्तर है, जहां बाह्य निमित्तों से उत्पन्न क्रोध, मान, माया आदि की प्रतिक्रियाओं को आन्तरिक एवं बाह्य दोनों स्तरों पर रोका जा सकता है, प्रत्याख्यानावरण है। इसमें व्यक्ति पूर्ण रूप से तनाव से मुक्त नहीं होता, किन्तु तनाव को कम जरूर कर लेता है, क्योंकि प्रत्याख्यानावरण कषाय में अनन्तानुबन्धी एवं अप्रत्याख्यानी की अपेक्षा से भी तीव्रता कम होती है। जिस कषाय के उदय से सर्वविरतिरूप प्रत्याख्यान प्राप्त नहीं होता, उसे
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