SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ __125 4. अकस्मात् भय - अकस्मात् का अर्थ होता है अचानक, अर्थात् जिसकी हमने कल्पना भी ना की हो, और अचानक कुछ हो जाए, उसे अकस्मात भय कहते हैं। 5. आजीविका भय – जीवन जीने में जो जरूरतें हैं, उनके खो देने या समाप्त होने का भय आजीविका भय है। 6. मरणभय – मृत्यु का भय मरणभय कहलाता है। 7. अपयश भय – हमारी मान-प्रतिष्ठा अथवा कीर्ति को ठेस पहुंचने का भय या अपमानित होने का भय अपयश भय है। भय भी व्यक्ति में तनाव उत्पत्ति के मुख्य कारणों में से एक है। प्रश्नव्याकरण सूत्र में भी कहा है कि -"मीतो अन्नं पि हु मेसेज्जा' अर्थात् स्वयं डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है।53 "भीतो अबितिज्जओ मणुस्सो। भीतो भूतेहिं घिप्पई, भीतो तवसंजमं पि हु मुएज्जा। भीतो य भरं न नित्थरेज्जा। अर्थात् भयभीत मनुष्य किसी का सहायक नहीं हो सकता। भयाकुल व्यक्ति ही भूतों का शिकार होता है। भयभीत व्यक्ति तप और संयम की साधना छोड़ बैठता है। भयभीत व्यक्ति किसी भी गुरुतर दायित्व को नहीं निभा सकता है। 7. स्त्रीवेद – स्त्री की पुरुष के साथ रमण करने की जो इच्छा होती है, उसे स्त्रीवेद कहते हैं। 8. पुरुषवेद - पुरुष को स्त्री के साथ रमण करने की जो इच्छा होती है, - उसे पुरुषवेद कहते हैं। 5 प्रश्नव्याकरणसूत्र - 2/2 54 वही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy