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विकल्प की चेतना कर्म-चेतना हो जाती है। इसे तनावग्रस्त चेतना भी कह सकते हैं। यह कर्मचेतना ही नवीन आश्रवों को जन्म देती है और रागभाव या कषायभाव, जो तनाव के मूल हेतु हैं, के कारण बंध का भी हेतु बनती है।
कर्मफलचेतना एवं तनावमुक्ति -
___ व्यक्ति के जो भी पूर्व कर्म संस्कार होते हैं, उनसे उत्पन्न होने वाली अनुभूतियाँ कर्मफलचेतना कही जाती है। कर्म अनुभूतियों से जन्म लेते हैं, किन्तु जब पूर्व संस्कार से उत्पन्न अनुभूतियों में राग-द्वेष व कषाय का तत्त्व नहीं होता तो उनसे उत्पन्न होने वाली चेतना कर्मफल चेतना है। विविध कर्मों से उत्पन्न सुखद व दुःखद अनुभूति रूप यह कर्मफल चेतना ही कभी ज्ञान चेतना तक सीमित रहती है तो कभी कर्म चेतना के रूप में बदल जाती है, किन्तु जो साधक पूर्व कर्म संस्कारों के कारण उत्पन्न होने वाली इन अनुभूतियों में कोई नवीन संकल्प नहीं करता है। उन अनुभूतियों की अनुभूति मात्र करता है तो उसकी यह चेतना कर्मफलचेतना कही जाती है। जिस प्रकार ज्ञानचेतना मात्र अनुभूति है उसी प्रकार कर्मफलचेतना भी मात्र अनुभूति है। अनुभूति जब अपनी यथार्थ स्थिति में होती है और संकल्पों-विकल्पों से मुक्त होती है तो ऐसी अनुभूतियाँ कर्मफल चेतना होती है। इसी सम्बन्ध में श्रीमद् राजचन्द्र ने सद्गुरू के लक्षण बताते हुए कहा है कि जो कर्म के उदय में भी उनके प्रति संकल्प विकल्प न कर मात्र साक्षीभाव से जीता है, वही शुद्ध कर्मफल चेतना की अनुभूति से युक्त होता है। यह शुद्ध अनुभूति कर्मबंधन का हेतु नहीं है और इससे भी तनावों का सर्जन नहीं होता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि ज्ञानचेतना अबंधक है किन्तु कर्म चेतना बंधक है। जहाँ तक कर्मफलचेतना का सम्बन्ध है यदि साधक उसके प्रति संकल्प- विकल्प नहीं करता है तो यह कर्मफलचेतना अबंधक रहती है, किन्तु जब साधक कर्मफल चेतना की अवस्था में उन दुःखद अनुभूतियों के निराकरण या सुखद अनुभूतियों की प्राप्ति की इच्छा करता है, तो उसके साथ संकल्प जुड़
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