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________________ उपलब्धि के लिए साधना करता है । यही परमात्म स्वरूप की उपलब्धि पूर्णतः तनावमुक्ति की अवस्था है, क्योंकि यह वीतराग दशा है। जैनदर्शन में त्रिविध आत्मा की जो अवधारणा दी गई है, वे मनोवैज्ञानिक दृष्टि से तनाव, तनावमुक्ति के प्रयास एवं तनावमुक्ति की अवस्थाएँ हैं। जो व्यक्ति तनावयुक्त है, वह बहिरात्मा है, जो तनाव के कारणों को समझकर उसके निराकरण का प्रयास करता है वह अन्तरात्मा की अवस्था में आ जाता है। इसी क्रम में जब अन्तरात्मा तनावों के कारणों का निराकरण कर उन्हें पुनः उत्पन्न नहीं होने देता है तो वही परमात्मा बनने का प्रयास होता है और यही प्रयास सफल होने पर पूर्णतः तनावमुक्त परमात्म - अवस्था प्राप्त होती है । त्रिविध चेतना और तनाव जैनदर्शन में आत्मा की सक्रिय स्थिति को चेतना कहा गया है। जैन आचार्यों ने इसे भी तीन भागों में बांटा हैं 14 1. ज्ञान - चेतना, 2. कर्म - चेतना, और 3. 14 अ ) प्रवचनसार, गाथा - 123-125 ब) "ज्ञानाऽस्या चेतना बोध; कर्माख्याद्विष्टरक्ता । जन्तोः कर्मफलाऽख्या, सा वेदना व्यपदिश्यते । । Jain Education International 105 कर्म-फल ज्ञान–चेतना एवं तनावमुक्ति : ज्ञानचेतना का तात्पर्य होने वाली विविध संवेदनाओं की अनुभूति है । यह चेतना श्वास प्रेक्षा से लेकर शरीर की संवेदनाओं की चेतना तक मानी जा सकती है। इसमें विविध प्रकार के संवेदन होतें हैं, इनको देखा जाता है या उनकी प्रेक्षा की जाती है। चेतन शरीर का जब बाह्य जगत से इन्द्रियों के माध्यम से सम्पर्क होता है तो उसके परिणामस्वरूप उसमें विविध प्रकार की संवेदनाएँ उत्पन्न होती हैं। उन संवेदनाओं के प्रति सजगता ही ज्ञान चेतना है । जब व्यक्ति में संवेदनाओं के प्रति सजगता आती है तो वह तनाव को उत्पन्न — - चेतना For Personal & Private Use Only अध्यात्मसार, आत्मनिश्चयाधिकार - 45 www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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