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________________ भी पूरी तरह निष्क्रिय नहीं होती। उनकी सक्रियता ही तनाव को जन्म देती है। वे अवचेतन एवं चेतन मन की सक्रियता को बढ़ाती हैं। फलतः वासनात्मक मन (Id) और आदर्श मन (Super Ego) दोनों के बीच एक संघर्ष होता है। दमित वासनाएँ और इच्छाएँ पुनः सक्रिय होकर चेतन मन को प्रभावित करती हैं, वहीं आदर्शात्मक मन उन्हें नकारने की कोशिश करता है। फलतः दोनों के बीच एक संघर्ष का जन्म होता है। आध्यात्मिक आदर्श और दैहिक वासनाएँ जब संघर्षरत होती है, तो चेतना में एक तनाव उत्पन्न होता है, जो हमारे मन और शरीर दोनों को प्रभावित करता है। शरीर उनकी पूर्ति की अपेक्षा रखता है, तो आदर्श मन (Super Ego) उसे नकारने का प्रयास करता है। इससे चैत्तसिक संतुलन भंग होता है और तनाव उत्पन्न होता है। इस प्रकार उपर्युक्त चेतना के तीनों स्तर संघर्षशील होकर व्यक्ति को तनावग्रस्त बना देते हैं। इस प्रकार फ्रायड आदि मनोवैज्ञानिकों ने मन के जो तीन स्तर बताए हैं, उनमें वासनात्मक मन (Id) और आदर्शात्मक मन (Super Ego) दोनों संघर्षशील होकर तनाव का कारण बनते हैं। इस प्रकार मन के उपर्युक्त इन तीन स्तरों का भी तनाव से सह-सम्बन्ध देखा जा सकता है। जैन, बौद्ध और योगदर्शन में मन की अवस्थाएँ - मन क्या है ? उसका स्वरूप क्या ? वह किस प्रकार तनाव उत्पन्न करता है, एवं किस प्रकार तनावों से मुक्त करता है ? वस्तुतः मन के भी अनेक स्तर हैं, इन स्तरों की चर्चा हम पूर्व में कर चुके हैं। यहाँ हम जैन, बौद्ध और योगदर्शन में मन की जो अवस्थाएँ वर्णित हैं और उनका तनावों से क्या सह-सम्बन्ध है ? इसकी विस्तार से चर्चा करेंगे। जैन, बौद्ध और योगदर्शन के अनुसार मन ही तनाव की जन्मभूमि है और. मन ही तनावमुक्ति का साधन भी है। मन की इन विभिन्न अवस्थाओं के आधार पर ही मन बन्धन और मुक्ति का कारण माना जाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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