________________ रोम-रोम रस पीजे सम्भावनाओं का विज्ञान अतुलनीय पुरस्कारों से पूर्ण है। कभी जो कार्य असम्भव कहलाते थे, वे अब सब सम्भावित होने लगे हैं। विकास के रास्ते अवरुद्ध नहीं हुए हैं। जरा आँख खोलें, विकास के नये-नये आयाम हमारे सामने हैं। घेरे के व्यामोह से ऊपर उठे और कुछ हो-गुजरने का संकल्प आत्मसात् करें। चिन्तन के ये सत्र हमें दिशा दरशाएँगे। संकल्प और प्रयत्न-दोनों का साहचर्य हो, तो सफलता की रसधार रोम-राम से फट पड़ेगी। सफलता की हर सम्पदा हमसे ही जड़ी है। हमें आत्मसात् करनी चाहिये आत्म-सम्पदा को, व्यक्तित्व की अस्मिता को। -महोपाध्याय ललितप्रभसागर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org