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रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ
वैमनस्य
वैमनस्य अमृत को भी जहर बना देता है।
वैर मनुष्य का जीवन पेड़ के पत्ते पर पड़ी प्रोस-बूद की तरह है। जीवन की इस छोटी-सी पगडंडी पर दुश्मनों की कतार खड़ी करना अज्ञानता है ।
वैर से वैर ठीक वैसे ही शान्त नहीं होता, जैसे स्याही से सना वस्त्र स्याही से साफ नहीं होता।
वैराग्य घर-बार छोड़कर संन्यासी हो जाना वैराग्य का बौना रूप है। वैराग्य की वास्तविकता विचारों से वासना का निष्कासन है।
व्यक्तित्व-विकास व्यक्तित्व का विकास करने के लिए आवश्यक है कि हम दूसरों के अपराधों को क्षमा करें तथा स्वयं अपराधों से दूर रहें।
व्यसन व्यसन मृत्यु का निमन्त्रण है। यह वह बेड़ी है, जो व्यक्ति को जीवन के आदर्शों की ओर जाने से रोकती है।
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