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प्रेम
जो जकड़ प्रेम के धागों में है, वह लोहे की जंजीर में नहीं ।
रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ
प्रेम ही तो जीवन्तता की वह पहली निशानी है, जिसके पदचिह्नों पर समाज चलता है । बगैर प्रेम का न केवल समाज सूना है, वरन् जीवन भी श्मशान है ।
प्रेम-सद्भाव
सिवा प्रेम और सद्भाव के इस दुनियाँ में है ही क्या, जो किसी को शाश्वत रूप से दिया जा सके ।
फल-भेद
सारे वृक्ष एक ही माटी से उत्पन्न होते हैं । फलों में होने वाला विभेद बीज के संस्कार के कारण है ।
बन्धन और मुक्ति
बन्धन और मुक्ति मात्र साधना और विराधना से नहीं है, वह तो जीवन की हर सांस से जुड़े हैं । कुछ लोग संसार में रहते हुए भी मुक्त हो जाते हैं ।
बुढ़ापा देह को आता है, दिल को नहीं ।
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बुढ़ापा
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