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________________ [ ३९ प्रेम जो जकड़ प्रेम के धागों में है, वह लोहे की जंजीर में नहीं । रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ प्रेम ही तो जीवन्तता की वह पहली निशानी है, जिसके पदचिह्नों पर समाज चलता है । बगैर प्रेम का न केवल समाज सूना है, वरन् जीवन भी श्मशान है । प्रेम-सद्भाव सिवा प्रेम और सद्भाव के इस दुनियाँ में है ही क्या, जो किसी को शाश्वत रूप से दिया जा सके । फल-भेद सारे वृक्ष एक ही माटी से उत्पन्न होते हैं । फलों में होने वाला विभेद बीज के संस्कार के कारण है । बन्धन और मुक्ति बन्धन और मुक्ति मात्र साधना और विराधना से नहीं है, वह तो जीवन की हर सांस से जुड़े हैं । कुछ लोग संसार में रहते हुए भी मुक्त हो जाते हैं । बुढ़ापा देह को आता है, दिल को नहीं । Jain Education International For Personal & Private Use Only बुढ़ापा www.jainelibrary.org
SR No.003969
Book TitleRom Rom Ras Pije
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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