________________
३८ ]
रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ
प्रमाद लक्ष्य की प्राप्ति से पूर्व आने वाला प्रमाद उतना ही अनुचित है, जितना प्रस्थान के समय आने वाली छींक ।
सीढ़ियों पर बैठे रहने से मंजिल हाथ नहीं लगा करती।
प्रमाद-त्याग प्रमाद की जंजीरों को तोड़ने के बाद ही ध्यान-समाधि की ओर कदम गतिमान हो सकते हैं।
प्रशंसा पेट की भूख का अहसास दिन में दो बार होता है, किन्तु प्रशंसा की भूख तो सपने में भी जग जाती है।
प्राप्त प्राप्त में तृप्त होना जीवन का रचनात्मक पहलू है।
प्रार्थना सच्ची प्रार्थना पत्थर में भी परमात्मा को पैदा कर देती है।
प्रार्थना में परमात्मा से की जाने वाली शिकायत प्रार्थना के महत्त्व को कम करना है। हमें जो कुछ मिला पात्रता से अधिक मिला है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org