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रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ
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दोगलापन मुख में राम और बगल में छुरी की परम्परा का निर्वाह न केवल व्यक्ति बल्कि समाज के लिए भी घातक है।
धर्म
धर्म की जीवन्तता को चूनौती नहीं दी जा सकती। वह विस्मृत हो सकता है पर विनष्ट नहीं ।
धर्म व्यक्ति को मानवता का सम्मान करना सिखाता है। वह किसी के प्राण लेने का निर्देश नहीं देता।
धर्म आचरण की वस्तु है, साम्प्रदायिक व्यामोह बांधने का मार्ग नहीं । सदाचार और सद्विचार की प्रेरणा ही धर्म का व्यक्तित्व है।
धर्म राष्ट्र-विकास का मार्ग प्रशस्त करता है, उसके विभाजन का नहीं।
ध्यान बिखरती ऊर्जा का केन्द्रीयकरण ही ध्यान है। ध्यान का संकल्प दुनिया भर के विकल्पों से मुक्त होने का आधार है।
संसार के लिए वही ध्यान ज्यादा जीवन्त है, जो हमें शून्यता की बजाय जीवन्तता और प्रगति के मार्ग सुझाए ।
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