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रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ
कानों से सुनी हुई बात को तब तक निपट सच्चा नहीं माना जाना चाहिये, जब तक उसे आँखों से देख न लिया जाये।
दर्शन-समाधि तत्त्व-दर्शन में बुद्धि का निर्धम/निष्कम्प होना दर्शन-समाधि है।
दहेज दहेज के नाम पर बहू को पीड़ित करने वालों को यह नहीं भूलना चाहिये कि उनकी बहिन-बेटी भी कहीं बहू बनेगी।
दिल हृदय के रेगिस्तान में फूल खिलाने के लिए समर्पित दिल की दो बूद ही काफी है।
देह
देह माँ की भेंट है। हमारा मूल तो देह के पार है।
देह-आसक्ति उस देह पर कैसा अधिकार जो मरणधर्मा है। शरीर पर हमारा अधिकार-भाव समाप्त करने के लिए एक मच्छर ही काफी है।
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