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________________ मनुष्य और धर्म जीवन एक लम्बी तीर्थयात्रा है) इस यात्रा में सपाट रास्ते भी हैं और ऊबड़-खाबड़ भी, खाइयां भी आती हैं और पथरीली चोटियां भी। बसन्त-पतझड़, दोस्ती-दुश्मनी, अमीरीगरीबी, सुख-दुःख- हर तरह की सम्भावना है। यहाँ सागर की लहरों में खेलने का आनन्द है तो उसका खारापन भी है। हरियाली है, तो सूखे पत्तों की खरखराहट और कांटों की चुभन भी है। फूल हैं, तो फूलों पर मंडराने वाले भौरे भी हैं। अजी, इसी का नाम तो जिंदगी है – हंसती-खिलती, रोती-बिलखती। सुख और समृद्धि के नाम पर निरन्तर संघर्ष जारी रहता है और इस संघर्ष के साथ चलता है मनोमन एक विचित्र-सा अन्तरद्वन्द्व, धुएं-सी घुटन, पीड़ा की कांटों-सी कसक। इस हर उठापटक से बचता है वह, जो झूठ और झूठे सुख की पागल-दौड़ से स्वयं को अलग कर लेता है। जो जीवन को तीर्थयात्रा मानकर Jain Education International For Personal & Private Use OBTARE gat/gary.org
SR No.003968
Book TitleAntargruha me Pravesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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